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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर. अर्थ-नूत, नविष्यत् , वर्तमान, येह तिन कालमें होनेवाले पदापोंका जाननेवाला होनेसें तिस ईश्वर परमात्माका नाम त्रिकाल वित् है. ५ " कोणाष्टकर्मा. पु. वीणानि अष्टौ ज्ञानावरणीयादीनि कर्माणि यस्य इति कीणाष्टकर्मा.” अर्थ-वीण हो गये है ज्ञानावरणीय आदि अष्ट कर्म जिनके तिस परमात्माका नाम हीणा ष्टकर्मा है. ६ " परमेष्टी. पु. परमे पदे तिष्टति इति परमेष्टी परमात् तिकिदिति शनि प्रत्यये नीरुष्टानादित्वात् पत्वं सप्तम्या अलुक् च अर्थ-परम नत्कृष्ट ज्ञान दर्शन चारित्रमें स्थित होनेसे ईश्वर परमात्माका नाम परमेष्टी है. “ अधीश्वरः. पु. जगतामधीष्टे इत्येवंशीलोऽधीश्वरः स्थसन्नासपिसकसोवर इति वरः.” अर्थ-जगतजनोंकु आश्रयनूत होनेसें तिस परमात्माका नाम अधीश्वर है. ___G “शंन्नुः. पु. शं शाश्वतसुखं तत्र नवति इति शंन्नुः " शंसंस्वयं विप्रोदुबोधुरिति दुः. अर्थ-सनातन सुखके समुदायमें दोन करके ईश्वर परमात्माका नाम शंन्नु है. ___ए“ स्वयंन . पु. स्वयं आत्मना तथान्नव्यत्वादिसामग्रीपरि पाकात् न तु परोपदेशात् नवति इति स्वयंनू.” अर्थ-अपनी जव्यत्वपनाकी स्थिति पूर्ण होनेसें स्वयमेय पैदा होता है इस लिये तिस ईश्वर परमात्माका नाम स्वयंनू है. १० " नगवान्. पु. नगः कोर्थः जगदैश्वर्य झानं वा अस्ति अस्य इति नगवान् ” अतिशायिने मतुः " अर्थ-इस जगतका सब ऐश्वर्य और ज्ञानहै जिसकुं ऐसे परमात्माका नाम नगवान है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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