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________________ प्रथमखम १३५ परमेश्वरके सत्य नाम है वे आगे नव्यजनोके जानने वास्ते लिखते है. “ अर्हन जिनः पारगतस्त्रिकाल वित् कीणाष्टकर्मा परमेष्ठयधीश्वरः । शंनुः स्वयंनूनगवान् जमत्प्रनुः तीर्थंकरस्तीर्थकरो जिनेश्वरः ॥ स्याहायनयदसाः सर्वज्ञः सर्वदर्शिकेवलिनौ । देवाधि देवबोधिदपुरुषोचमवीतरागाप्ताः " ॥२॥ इन दोनों काव्योके अर्थ साथे ईश्वर परमात्माका यथार्थ नामो बतलाते है. १ "अर्हन. पु. चतुस्त्रिंशतमतिशयान् सुरेशदिकृतां पजां वा अर्हति इति अईन.” मुछिपाईः सनिशतुस्तुत्य इति शूप्रत्ययः अरिहननात् रजोहननात् रहस्यानावाच्चेति पृषोदरादित्वात् अर्हन्.” अर्थ-अनूतरूप आदि चौंतीश अतिशयोंके योग्य होनेसें और सुरेऽनिर्मित पूजाके योग्य होनेसें तीर्थंकरका नाम अर्दन है. मुहिषादि जैन व्याकरणके सूत्रसे यह अर्हन शब्द सिह होता है. अब दूसरी रीतीसेंनी अर्हन् शब्दका अर्थ दिखलाते है जैसे अष्टकर्मरूप वैरियोंको हननेसें और इस जगतमें तिनके झानके आगे कुबन्नी गुप्त नही रहनेसे तिस ईश्वर परमात्मा तीर्थंकरका नाम अर्हन है. . २" जिनः. पु.जयति रागद्वेषमोहादिशत्रून् इति जिनः " अर्थ--राग, द्वेष, महामोह आदि शत्रुवोंकु जितनेसें तिस परमात्माका नाम जिन है. ३ " पारगतः पु. संसारस्य प्रयोजनजातस्य पारं कोर्थः अंतं अगमत् इति पारगतः." अर्थ-संसारसमुश्के पार जानेसें और सब प्रयोजनोका अंत करनेसें तिस परमात्माका नाम पारगत है, " त्रिकाल वित्, पु. त्रीन कालान् वेत्ति इति त्रिकाल वित्" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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