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अज्ञानतिमिरनास्कर. २५ " अंधःपु. अंधयति कोर्थः चर्मचकुषा न पश्यति इति अंधः ” अर्थ-ईश्वर पोते अपने चरमचकुयोसें अपनी इंडियोंका छारा नही देखनेवाला होनेसे ईश्वरकानामधनीकहनानीठीक है.
२६ “ अमंगलः पु. नास्ति मंगलं कोर्थः पयोजनं यस्य सः अमंगलः” अर्थ-किसी बातका प्रयोजन न होनेसें ईश्वरका नाम अमंगल है.
७ “ गर्दली. स्त्री. गर्दयति वेदशब्दं कारयति इति गर्दनी" अर्थ-इस पृथ्वी नपर वेदशब्दाका करानेसे ईश्वरका नाम गर्दनी है.
२७ “ गाएमी. पु. ज्ञानग्रन्धिरस्यास्ति इति गाएमी.” अर्थज्ञानग्रंथिवाला होनेसे ईश्वरका नाम गाएकी है.
श्ए “चमालः पु. चंमति दुष्टान् इति चंझालः.” अर्थ-उष्ट जनोंके नपर कोप करनेवाला होनेसे ईश्वरका नाम चंकाल है.
३० “ चौरः पु. चोरयति उष्टानां सुखधनं इति चौरः ”. अर्थ-दुष्टोंका सुख रूप धन ले लेनेसें ईश्वरका नाम चौर है, __३१ "तुरगःपु. तुरेण वेगेन सर्वत्र व्याप्नोति इति तुरगः"अर्थवेगसे सर्वत्र व्यापने वाला होनेसें ईश्वरका नाम तुरग है. ___३५ “दुःखंः. न. फुःखयतिः पुष्ठान इति खं." अर्थ-5ष्ठोंकों सदा दुःख देनेवाला होनेसे ईश्वरका नाम दुःख है..
३३ " उर्जनः पु. उष्ठो जनो यस्माजायते कस्मात् सर्वोत्पत्तिकारणत्वात् ईश्वरस्य. " अर्थ-उष्ठ जनोंकी नत्पत्ति इश्वरसें होनेसे इश्वरका नाम उर्जन, है. इति अलं प्रपंचेन.
अब बुझ्जनोकुं विचार करना चाहियेकि केवल व्युत्पत्तिमात्रसे तो यह नपरः दिखाये दूये महा खराब नामनी ईश्वरके हो सक्ते है. इस वास्ते दयानंदजीका कहना महामिथ्या है. जो जो
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