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________________ प्रथमखम. १५ “ खलः. पु. खलति सृष्टयादिरचनायां स्वस्वन्नावात् इति खलः ” अर्थ-सृष्टि आदि कालमें अपने स्वनावसे खलायमान होनेसे ईश्वरका नाम खल है. १६ “ कुविंदः. पु. कुं पृथ्वीं विंदति कोऽर्थः प्राप्नोति सवत्र व्यापकत्वात् इति कुविंदः.” अर्य-सर्वत्र व्यापक होनेसे सब पृथ्वीका लान हुआ है इस लीये ईश्वरका नाम कुविंद है. १७ " पाषंमी. पु. पापं खंमयति इति पाषंमी. " अर्थनक्तजनोके पापको खंमन करणेसे ईश्वरका नाम पामी है. १८ " बलदः. पु. नक्तजनान् बलं ददाति इति बलदः." अर्थ-नक्त जनोंकेतांश बलका दाता होनेसे ईश्वरका नाम बलद है. १ए “नगंदरः पु.नक्तजनानां योनि कोऽर्थः पुष्टयोनिषु नत्पति दारयति इति नगंदरः.” अर्थ-नक्तजनोंकी उर्गतिको दूर करनेवाला होनेसे ईश्वरका नाम नगंदर है. ___ २० “ महिषः. पु.मह्यते जनैरिति महिषः. " अर्थ-जनोके समुदाय करके पूज्य होनेसे ईश्वरका नाम महिष है. १ “ श्वाः, पु. श्वयति कोर्थः वेदध्वनि प्रापयति इति श्वा." अर्थ-वेदध्वनिको प्राप्त करनेवाला होनेसे ईश्वरका नाम श्वा है. २२ “ अहिः पु. आहंति नक्तजनपापानि इति अहिः,” अर्थ-नक्तजनोके पापोंका नाश करनेस ईश्वरका नाम अहि है. २३ “ स्त्री. स्त्री. स्यते वेदध्वनी कारयते इति स्त्री. अर्थ-इस पृथ्वी पर वेदध्वनिकुं प्रगट करनेसे ईश्वरका नाम स्त्री कहेली ठीक है. ५ अज्ञः पु. “नजानाति स्वस्य आदि इति अज्ञः” अर्थ-अपनी आदिके न जाननेसे ईश्वरका नाम अज्ञ है.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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