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________________ १३२ अज्ञानतिमिरनास्कर. ५ गर्दनः. पु. गर्दति वेदशब्दं कारयति इति गर्दनः " अर्थ-वेदशब्दके करानेसे ईश्वरका नाम गर्दन है. ६ बिमालः पु. वेमति शपति उष्टान् इति विडालः " अर्थ-5ष्ट जनोंकु श्राप देणेंसें ईश्वरका नाम विडाल है. " कुक्कुरः. पु. कौ पृथिव्यां नक्तजनप्रबोधाय वेदध्वनि कारयति इति कुक्कुरः ” अर्थ-इस पृथ्वीपर नक्तजनोंके बोधके लिये वेदध्वनीके करानेसे ईश्वरका नाम कुक्कुर है. G“ यमः. पु. यमयति शुनाशुनकर्मानुसारेण जंतून दं. मयति इति यमः. अर्थ-नले बूरे कर्मोके अनुसार जीवोंके तांश दंग देनसें ईश्वरका नाम यम है. ए“ वृश्चिकः. पु. वृश्चति छिनति जक्तजनपापानि इति वृ. श्चिकः, अर्थ-नक्तजनोंके पापोंका वेदन करनेसे ईश्वरका नाम वृश्चिक है. १० " नारवाहकः. पु. जगतः नारं वहति इति नारवाहक: अर्थ-जगतका नार वहन करनेसे ईश्वरका नाम नारवाहक है. ११ “ विट. पु. विटति आक्रोशं करोति उष्टान् इति विट् , अर्थ-उष्टोंका उपर आकाश करणेसे ईश्वरका नाम विट् है. . १२ “ मंदः. पु. मंदते मोदते ऐश्वर्यपदे इति मंदः ". अर्थअपनें ऐश्वर्यपदमें नित्य खुशी रहनेस ईश्वरका नाम मंद है. १३ “ विश्वकाकः. पु. विश्वे काकः कोऽर्थः तिलकमिव वतते इति विश्वकाकः. " अर्थ--इस पृथ्वीरूपी नामिनीके नासस्थल में तिलककी तरें होनेसें ईश्वरका नाम विश्वकाक है. १५ “ गरलं न. गिरति प्रलयकाले सर्वेषां शरीराणीति गरलं. " अर्थ-प्रलयकालमें जीवोंके शरीरोका नाश करनेसे ईश्वरका नाम गरल है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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