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________________ १३० अज्ञान तिमिरास्कर. वास्ते बहोत हुं " यह तैत्तरेयोपनिषद्का वचन है हो नही मानना " सर्वं खल्विदं ब्रह्म नेद नानास्ति किंचन. " यदजी उपनिषद्का वचन है इसकों मिथ्या मशकरीसें कहता है, सो मशकरी यह है - यह वचन ऐसा है जैसाकि कहींकी इंट कहीका रोडा नेनमतीनें कुडवा जोडा, ऐसी लीलाका है. इस तरें सेंकको श्रुतियाको मिथ्या उदराई है, और सेंकमोंके स्वकपोल कल्पित अर्थ करें है. कहीं कहीं सांख्य, वेदांत, न्याय स्मृतिके वचन ग्रहण करें, कहीं स्वकपोलकल्पित कर्य करें, और कहीं मिथ्या बहराये; इस कथन सत्यार्थप्रकाश जरा पड़ा है. इस वास्ते दयानंदकी मतगोदमी प्रोढने योग्य नही. दयानंदनें जो व्युत्पत्तिद्वारा ईश्वरके अमि, वायु, रुड्, सरईश्वरकाना स्वती. लक्ष्मी आदि नाम सार्थक करे है वे कोई मकी कल्पित व्युत्पत्ति. विद्वान नही मानेगा. दयानंदजी अपनें सत्यार्थप्र काशके प्रथम समुल्लास में " खं १ अनि २ मनु ३ ६ ४ प्राण ५ गरुत्मान् ६ मातरिश्वा सुपर्ण भूमि ए विराटू १० वायु ११ आदित्य १२ मित्र १३ वरुण १४ अर्यमा १५ बृहस्पति १६ सूर्य १७ पृथ्वी १० जल १० आकाश १० संविता २१ कुबेर २२ अन्न २३ अन्नाद २४ अत्ता १५ वसु २६ चंद २७ मंगल २० बुध १० बृहस्पति ३० शुक्र ३१ शनैश्वर ३२ राहु ३३ केतु ३४ होता ३५ यज्ञ ३६ बंधु ३७ पिता ३८ माता ३० आचार्य ४० गुरु ४१ गणेश ४२ गणपति ४३ देवी ४४ शक्ति ४५ श्री ४६ लक्ष्मी ४७ सरस्वती ४८ धर्मराज ४९ यम ५० काल ५१ शेष ५२ कवि ५३ इत्यादि ईश्वरके नाम लिखे है. जला यह नाम कबीजी ईश्वरके हो सक्ते है ? अगर जो हो सक्ते है तो हम पूछते है कि यह नाम कोनसे कोशके आधारसें लिखे है अगर जो कोश फोस कुछ नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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