SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमखंम. १२ अर्थात् सिद्धपदके गुण; आचार्य पदके ३६ गुण; नपाध्यायपदके १५ गुण और मुनिपदके २७ गुण है. ये सर्व एक्कठे करे १०८ गुण होते है; सत्य ॐकारके १०८ गुण स्मरण करनें वास्ते अष्टोतरी माला जगतमें प्रसिद्ध हुई है. तथा दयानंद सरस्वतीनें अपने मनोकल्पित मतकी गोदमी दयानंदकाम बनाई है. सो रंगबिरंगी विरंगी है, क्योंकि प्रथम तकी गोदडी. जो सांख्य, मीमांसा, न्याय, वैशेषिक मतोंकी प्रक्रियाके सूत्र है वे रंग विरंगी है; परस्पर तिनका कहना मिलता नही है, क्योंकि सांख्य तो प्रकृति पुरुष मानता है, मीमांसक कर्म और ब्रह्म त मानता है; न्याय सोला और वैशेषिक पट् पदार्थ मानता है. उनका खंमन परस्पर एकैकने अपने शिवाय सर्वका कीया है. और सदागमवालोंनें सम्मति, द्वादशसार नयनचक्र पूर्वोक्त सूत्रों का खंकन यथार्थ किया है. तिस यह अनमिल रंग बिरंगी तर्क प्रमाण बाधित जीर्ण दूई श्रुति सूत्रोंको लेके मतकी गोदमी बनाई है. और इनपूर्वोक्त श्रुति सूत्र स्मृतिसूक्तोंके स्वकपोल कल्पित अर्थ बनानेसें गोदमी रंगविरंगी और विरंगी बनी है. देखिये, नवीन सत्यार्थप्रकाश पृष्ट ११, " सूर्याचं मसौधाता यथा पूर्वमकल्पयत् । दिवं च पृथिवीं चांतरीक्षमशोस्वः " ॥ ऋग्वेद मंगल १, सूत्र १२७ मंत्र ३. इस मंत्र में लिखा है ईश्वरनें आकाश बनाया, रचा है. पृष्ट २१५ में दयानंदजी लिखता है आकाश नित्य है. पृष्ट १०० में एक सांख्य मतका सूत्र लिखा है, तिसमें आकाशकी उत्पत्ति लिखी है. इस तरें बहुत श्रुतियों में प्रकाशकी उत्पति लिखी है. पृष्ट २१० " तदेत बदुःस्यां प्रजायेयेति । १ । सोऽकामयतबहुः स्यां प्रजायेयेति " | २ | अर्थ - आत्मा देखकर विचार करत है के में प्रजासें बहोत हुं. आत्मा ऐसी इच्छा करता है कि में प्रजाके 22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy