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अज्ञानतिमिरनास्कर. तथा आचार्य पदकी आदिमें दीर्घ आकार है सो लेना, और उपाध्याय पदकी आदिमें नकार है सो लेना, और मुनि पदकी आदिमें
मकार है सो लेना, तब यह पांच अकर नये-अ, अ, आ, न,म्, व्याकरण सिःह हैम, जैन, कालापक, शाकटायनके सूत्रोंसें “समानांतेन दीर्धः" इस सूत्र करके तीनो अकारोंका एक दीर्घ आकार दूआ, तब आ, न, म् , एसा रुप सिह दूआ. तब पूर्वोक्त व्याकरणके सूत्रोंसे आकार नकारके मिलनेसे अोकार सिह होता है और पूर्वोक्त व्याकरणोंके सूत्रोंसें मकारकां बिंदुरूप लिइ होता है. तब ॐकार सिह होता है. यह पंच परमेष्टिकोंही ॐकार कहते है क्योंकि अरिहंत नसकों कहते है जो सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अष्टादश दूषोंसे रहित, पृथिवीमें जीवांको सदागमका उपदेष्टा है; और; अशरीरी नसकों कहते है जो सिइ, बु, अमर, अजर, परमात्मा, ईश्वर, निरंजनादि अतंत गुणां करके संयुक्त मुक्तस्वरूप होवे आचार्य नसको कहते है जो पांच आचार पाले, जगत्को सत्शास्त्रका उपदेश करे; नपाध्याय नसकों कहते है जो सत्शास्त्रका पठण पाठण करावे; मुनि नसको कहते है जो पंचमहाव्रत और सत्तर नेद संयमके धारक होवे; इन पांचोके शिवाय जीवांकों अन्य कोई वस्तु नपास्य नही है. इनही पांचोके आय अक्षरोंसे ॐकार सिह होता है. यह सत्य ओंकारका स्वरूप है. मिथ्याकल्पना कल्पित ॐकारसें सत्य ॐकारकी महि. मा घट नही सकती है. तथा सर्व आर्य लोकोंके जप स्मरण वास्ते माला रस्वनेका
. व्यबहार सर्व प्राचीन मतोमें प्रसिाह है, तिस मास्वरूप. लाके १७ मणिये होते है. तिसका निमित्त पूर्वोक्त सत्य ॐकारके १५७ गुण है, अरिहंत पदके बार गुण, अशरीरी
जपमालाका
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