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________________ - प्रथमखम. १२ है, आकाशवत् . और सबसे बमा तव होवे जब आकाशसेंनी बडा होवे, सो है नही, क्योंकि आकाश सर्व व्यापक माना है. इस वास्ते ईश्वरका नाम ब्रह्मनी नही, किंतु स्वकपोलकल्पित है. और ईश्वरको सर्व व्यापक माननेसे पुरीषादि सर्व मलीन वस्तुयों में व्यापक होनेसे ईश्वरकी बहुत पुर्दशा सिह होती है. सत्यार्थ प्रका- दयानंदजीने जो ईश्वरका नाम ॐकार लिखा सो शसो अससार्थप्रकाश हो तो सत्य है, परंतु अ, न और म् से जो वायु अता है. नि आदिकोंका ग्रहण करा है सो अनघटित पथ्यरोके समान है, अप्रमाणिक होनेसें. क्या ऐसी ऐसी असत्कल्पना जिस ग्रंथमें होवे तिस ग्रंथका नाम सत्यार्थ प्रकाश कोई बुद्दिमान् मानेगा, क्योंकि प्राचीन वैदिक मतवालेतो पूर्वोक्त रीतीसे ॐकार मानते है, तिनके माननेमेंनी शंका नत्पन्न होती है, क्योंकि जब तीनो अवताररूप होके ॐकारने जगतमें माताके नदरसे अवतार लीना, तब अंकारके तीन खंभ हो गये, और इन तीनोंके शिवाय अन्यको ॐकार नही है. अकार रजोगुणरूप विष्णु, नकार सत्वगुणरूप ब्रह्मा, मकार तमोगुणरूप शंकर, इन तीनो अकरोंसें ॐकार बना तबतो अकारमेंमी तीनो गुण सिह होवेंगे. इस वास्ते यह कपनन्नी यथार्थ मालुम नही होता है, तो दयानंदजीका कल्पित अर्थ कग्नि वायु आदि क्योंकर ॐकार बन सकता है ? जैनमतमें ॐ- सत्य ॐकारका स्वरुपतों यह है-- कारका अर्थ. - अरिहंता असरारा आयरिय उवज्झाय मुणिणो पंचख्खर निष्पन्नो ॐकारो पंचपरामेष्ठि. अस्यार्थः-अरिहंत पदकी आदिमें अ है सो लेना. और अशरीरी सिपदका नाम है तिसकी आदिमेंनी प्रकार है सो लेना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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