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अज्ञानतिमिरजास्कर.
है ? जैकर कहोगे, पापीको पाप फल और पुण्यवान् को पुण्यफल देता है, जैसें राजा सज्जनोंको साधुकार देता है और पापी चौरादिकक दंग देता है तैसे ईश्वरजी करता है. यही ईश्वरकी द यालुता और न्यायता है यह कहना महा मिथ्या हैं, क्योंकि राजा लोको में चौरादिकोकों बंद करोकी हाक्ति नही है इस वास्ते चोरादिकको बंद नही कर सकता है. ईश्वरको तो तुम सर्व शक्तिमान मानते हो तो फेर पापीयोंकों पाप कररोंसे बंद क्यों नही करता है ? पापीयोंको पाप करणेंसें बंद न करलेस ईश्वर दयालु नही है, और ईश्वरही जानके पाप कराता है; फेर दंग देता है.. इस वास्ते तुम्हारा ईश्वर अन्यायीनी सिद्ध होता है; जैकर ईश्वर पापकरताकों नही जानता है तो अज्ञानी सिद्ध होता है. जानता है और रोकता नही तबतो निर्दय, असमर्थ पक्षपाती, रागी, द्वेषी सिद्ध होता है. हम प्रत्यक्ष देखतें है सर्व जीव जम चैतन्यके निमित्त अपने अपने करे पुण्य पापका फल सुख दुःख जोगतें है तो फिर काहेको ईश्वरको फलप्रदाता कल्पन करके अन्यजीवांको मां जालमें गेरे है ? जब हम अपने पुण्यपापानुसारी फल जोगते है तब तो जैसें दुकानदारसें थपनें पैसेसे लेकर वस्तुका जोगणा है तिसमें दुकानदारनें हमको क्या अधिक फल दिया ? कुबनी नही दिया; तैसेही निमित्तरूप दुकानदारसें हमनें अपने अपने पापपुण्यका फल जोगा तो तिसमें ईश्वरनें हमको क्या दिया ? इस वास्ते ईश्वर जगतका रक्षक नही.
तथा दयानंदजी कहते है ईश्वरका नाम ' खं ' और ' बह्म' जी है, सर्वत्र प्रकाशकी तरें व्यापक होनेसें खं, और सबसें बना होनेसें ब्रह्म है. यह लिखनामी मिथ्या है, क्योंकि जो सर्व जगें व्यापक होता है वो अक्रिय होता है, जो अक्रिय होता है वो अकिंचित्कर होता
ईश्वरका खं नामका खंडन
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