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________________ प्रथमखम. शमेनी परमेश्वरके नाम वायु, अनि पाश्कि नही है. जेकर व्यु त्पत्तिधारा वायु, अग्नि आदि परमेश्वरके नाम माने जावे, तबतो उलूल, अकिंचित्कर, विडाल, यश, अहि, वृश्चिक, इत्यादि लाखो नाम परमेश्वरके हो जावेगे; तवतो परमेश्वरको खल, खर, गदर्न, श्वा, कुक्कर, योनि, स्त्री, मरि, नगंदर, चौरादि नामसे कहना चाहिये. यह व्युत्पत्तिस्वरूप पमितोमें नपहास्य होवे, इस वास्ते पूर्वोक्त परमेश्वरके वायु, अग्नि आदि नाम सर्व मिथ्या कस्पित है.और जो दयानंदजीने ॐकारकी व्युत्पत्ति लिखी है सोनी मिथ्या है. “ अवति रहतीति ॐ," जब रक्षा करे तब सर्व जीवांकी करे, जेकर सर्व जीवांकी रक्षा करे तो जो जीव नूख, तृषा, मरी, रोग, चोरादिकोंके नपश्वोंसे मरते है तिनकी अथवा अगम्यगमन, चोरी, क्रोध, ईर्ष्या, शेष, असत्यनाषण, अन्याय इत्यादि कुकर्म करनेवालोकी फांसी, कैद नरकपातादिसें रक्षा क्यों नही करता है. जेकर कहोगे पापी जीवाने पाप करे है इस वास्ते वे फुःख नोगते है तिनकी ईश्वर क्या रक्षा करे; जब दुःखीयोंकी रक्षा नही करता है तो रक्षक कैसे सिइ होवेगा? ईश्वर अन्यायी जेकर कहोगे जो जैसा पुण्य पाप करता है तिसको ४ ईश्वर तैसाही फल देता है, यही उसका रक्षकपणा है, तो हम पूजते है प्रथम ईश्वर जीवांको पापकर्मही करणा बंद क्यों नही करता है ? क्या ईश्वरको पापीयोंको पाप करणेसें बंध करणेकी शक्ति नही है? जेकर कहे शक्ति है, तो पाप करणा बंद क्यों नही करता ? जेकर कहोगे, ईश्वरमें पाप करणेके बंद करणेकी शक्ति नही, तो ईश्वर सर्वशक्तिमान नही, और जब पापीयोंका पाप करता बंद न करे और पापके फल नूख, तृषा, रोग, शोकादिसें मुक्त न करे तो ईश्वर दयालु क्योंकर दो सत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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