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प्रथमखम. यतो नवति संसारः सर्वानर्धपरंपरः॥" अर्थ-दो शास्त्रही नही है जो हिंसाका नपदेश करे, कसी है हिंसा, अनर्थकी देनेवाली है तिस हिंसासें संसार सर्व अनर्थ परंपररूप होता है. इत्यादि बहुत शास्त्रोमं हिंसक यझोंकी 'निदा' करी है. यह 'निंदा' करनेवाले अध्यात्मवादी और प्राये वैष्णवमतवाले है. परंतु कर्मकांडियोंने वैदिक यझकी 'निंदा' किसी जगेनी नही करी. हनने जो इस गंघमें हिंसक यझोकी 'निंदा' लिखी है सो ब्राह्मलोके शास्त्रानुसार लिखी है, परंतु जैनमती. योंके शास्त्रोंसें नही लिखी है. जैनमतके शास्त्रोम तो सर्वोत्कृष्ट 'निंदा' यह लिखी हैउत्तराध्ययनमें बनारसमें दो नाई वेदोके पढे हुए रहते थे. बझेका जयघोष और विजयघोपकी नाम अपघोष था और गेटेका नाम विजयघोष कथा है. था. तिलमेंलें जयघोष जैनमतका साधु हो गया था. और विजयघोष वेदोक यज्ञ करने लग रहा था. तिसके प्रतिबोध करने वास्ते जयघोष मुनि विजयघोषके यज्ञपामेमें आये. दोनो नाईयोंकी बहुत परस्पर चर्चा दूई. तब विजयघोषनें वैदिक यज्ञ गेम दीनें, और नाईके पास दीक्षा ले लेनी. यह सर्वाधिकार विस्तार पूर्वक देखनो होवे तो श्री नत्तराध्ययनके पच्चीसमें अध्ययनमें देख लेना. तिसमें वेदो बाबत जयघोषमुनिनें जो वि. जयघोषको कहा है सो यहां लिखा जाता है.
" पशुबंधा सव्व वेय जठं च पाव कम्मणा नतंवायंति दुस्सीलं कम्माणि बलवंति हा. उत्तराध्ययन" २६अ.
टीका-" पशूनां गगादीनां बंधो विनाशाय नियमनं यैहेतुनिस्तेऽमी पशुबंधाः “ श्वेतं गगमालनेत वायव्यां नूतिकाम इत्यादि वाक्योपलहिताः। न तु आत्मारे ज्ञातव्यो मंतव्यो निदि
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