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________________ प्रथमखंम. दोक्त रीतीनें मारक इनका मांस कलेजा आदि क्षण करनेमें धर्म समजता था. उपर लिखे मुजब वेद हिंसक शास्त्र है, और जो कहते है वेदों में हिंसा नही वो हम सत्य नही समजते है. क्या शंकरस्वा • मी, इट, महीधर, सायन इनको वेदांका अर्थ मालुम न दूश्रा जो ननोनं हिंसाधर्म वेदोक्त माना और आजकालमें जो स्वकपोलकति वेदा नवीन अर्थ दयानंद आदि कहने और बनाने लग रहे है वे सच्चे हो जावेंगे ? នថា स्वामी दया- यद्यपि दयानंद सरस्वतीनें वेदोके अर्थ जैन बौध नंद. धर्मसे बहुत मिलते करे है अर्थद्वारा वेदोंका असली अर्थ ष्ट कर दिया है. यही एक जैनमतीयोंकों मदद मि ली है. परंतु दयानंदजीने यह बहुत असमंजस करा जे अपनें मतके आचार्योंकों जूग ठहराया. हां, जिस बखत वेद बनाये गये थे, जेकर उस वखत दयानंद सरस्वतीजी पास होते तो जरूर वेद बनाने वाला झगा करके अपने मनके माने समान वेद बनवाते वा आप रचना करते. परंतु इस वखतमें वा समय नही इस वास्ते दयानंदजीने अर्थही उलटपुलट करके अपना मनोरथ सिद्ध कर लिया. यथार्थ तो यह वात है कि वेदोंमें हिंसा प्रवश्यमेव है. सो उपर अनी तसे लिख आये है. इस हिंसाकी जैनी निंदा करते है इस वास्ते ब्राह्मण लोक जैनीयोंको नास्तिक और वेद कहते है, परंतु जैसे वैदिक हिंसाकी निंदा वेद माननेवालोनें करी है तैसी जैनीयोंनें नही करी. जैनी तो वेदोंके परमेश्वरका कल पुस्तकही नही मानते है, क्योंकि वेद कालासुरनें लोगों नरक जाने वास्ते महाहिंसासंयुक्त बनाये है ऐसे जैनी लोग मानते है. जो वस्तु स्वरूपसेंदी बुरी है फेर तिसकों जो 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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