SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ अज्ञानतिमिरनास्कर. वेदमंत्रोले आप्यायन संस्कार, प्रोक्षण संस्कार, नपाकरण संस्कार जिस पशुको हुआ हो तिसका मांस हव्य तथा कव्य समजके नक्षण करनेका निषेध नही मानते थे. इस तेरेंका वैदिक मत था इस वास्ते वेद हिंसक शास्त्र है वेद हिंसक ठ बिचारे बेगुनाह, अनाथ. अशरण, कंगाल, गरीव, - कल्याणास्पद, ऐसे जिवांको मारणा और मांसन्न कण करणा और धर्म समजना यह मंदबुड़ियोंका काम है. और जिस पुस्तकमें हिंसा करणेका नपदेश होवे और मांस मदिराका बलिदान करना लिखा होवे वे शांस्वनी जूग है, और वे देवतेनी मिथ्या दृष्टि अनार्य है, और तिस शास्त्रका प्रथम नपदशकनी निर्दय, निर्लज और अज्ञानी, मांसमदिराका स्वाद क ओर अन्यायशिरोमणि है. परमेश्वरके वचनतो करुणारसन्नरे, सत्यशील करके संयुक्त,निर्हिसक तत्वबोधक, सर्व जीवांके हितकारक, पूर्वापर विरोध रहित, त्रमाण युक्ति संपन्न. अनेकांत स्वरूपस्यात् पद करी लांठित, परमार्थ और लौकिक व्यवहारसे अविरु.६ इत्यादि अनेक गुणालंकत नगवान अर्हत परमेश्वरके वचन है. ये पुर्वोक्त लक्षण वेदोंमें नही. लक्षण तो दूर रहे, ऐसे ऐसे बेमर्याद वचन वेदों में है कि जो आज कालने निच लोक होलीमें नी ऐसे निर्लज वचन नही बोलते है. जो कोई ब्राह्मणादि दया धर्म मानते है और प्ररूपते है वे वेदांके विरोधि है. क्योंकी वेदों में दयावर्मकी मुशकनी नही है. जेकर वेदोंमें अहिंसक धर्मकी म. हिमा होती तो सौगतको काहेको कहेते “ अहिंसा कथं धर्मो नवितु नर्हति ” अर्थात् अहिंसा कैसे धर्म हो सकता है, अपि तु हिंसाहो धर्म हो शकता है इसमें यह सिद्ध होता है कि शंकरस्वामीनी गाय, बलद, बकरा, उंट, सूयर, प्रमुख जीवांकों वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy