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________________ प्रथमखंम. सूत्र और नागवत ये चार एक एकसे बलवान अधिक मानने योग्य है. और स्वामीनारायण सहजानंदने अपनी लिखी शिक्षापत्रीमें कितनेक शास्त्रोंकों सच्चे प्रमाणिक ठहराये है तिनके नाम“वेदाश्च व्याससूत्राणि श्रीमन्नागवताविधं । पुराणं नारते तु श्री. विष्णोर्नामसहस्रकं ॥ ए३ ॥ धर्मशास्त्रांतर्गता च याज्ञवल्क्यऋषेः स्मृतिः । एतान्यष्ट ममेष्ठानि समास्त्राणि नवंति हि ॥४॥ शिक्षापत्रिकाश्लोकः ॥ वेद, व्याससूत्र, श्रीमद्भागवत नारतमें श्रीविष्णुसहस्रनाम, पुराण धर्मशास्त्रमें याज्ञवल्क्य स्मृति ए आठ सत् शास्त्र हमारे इष्ट है. ए३-४ इस तरे शास्त्र जूठे और सच्चे माने अनेक संप्रदाय निविविध मतो- काले. ऐसा घोर अंधकार नरतखंमके लोगोंके की उत्पत्ति. वास्ते खमा दूा कि कोश्नी सच्चे जूठे पंथ और शास्त्रोंका निर्णय नही कर सकता है. ऐसे घोरांधकारमें आकुल व्याकुल होकर नक्तिमार्गवालें तथा कबीरजी नानकसाहिब दादू प्रमुख अनेक जनोनें मूर्तिपूजन ओम दिया, और अपनी बुड़िके अनुसारे अपणें अपणे देशकी नाशमें नाषाग्रंथ रचे, और ब्राह्मणोंके सर्व मतों गोड दिया, वर्णाश्रमकी मर्यादानी तोक दीनी. तिनमें नानकसाहिबका पंथ बहुत फेला कारणकि नानकसाहिबिसें पीले दशमें पाट उपर गोविंदसिंहजी इये, तिनके काल करा पीछे मुसलमानोका राज्य मंद हो गया, और गुरु गोविंदसिंहके शिखोंका जोर राजतौरसे बढा. इतनेहीमें लाहोरमें रणजीतसिंह राजा हो गया, तिसके राजतेजसे नानकसाहिबके पंथवालोंकों बहुत मदद मीली. ब्राह्मण, क्षत्रिय, रोमे, जाट प्रमुख लाखों श्रादमीयोंने शिर नपर केश रखाके गुरुके शिख बन गये. इनके म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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