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________________ ए अज्ञानतिमिरनास्कर, तमें मूर्तिपूजन नही. अपणे दशों गुरुयोंकी चित्रकी मूर्तियों तो रखते है परंतु मंदिर में मूर्ति बनाके नहि पूजतेहै, परंतु गुरुके बनाये ग्रंथ साहिबकी बहुत विनय करते है. इनके मूल अंग्रमें ईश्वरकी महिमा बहुत करी है और इस नाबालाओंकी बडा लक्ति करते है, और हरेक नूखेको खानेकानी है. इनके ग्रंथमें जीवहिंसा और मांस मदिरा खाना पीना निषेध करा है. परंतु कितनेक पापी शिप्य इस कामकों करतनी है. नानकसाहिबके शिख अनुमानसे इग्यारह लाखके लग जग होंगे. ये लोक गुरुके ग्रंथ समान और किसी पुस्तकको उत्तम नही समजते है. और यह ग्रंथ साहिब साधारणसी पंजाबी ना. षामें नानक गुरुके शिष्य अंगद साहिबने रचा है, और गुरु अर्जुन साहिबने कागजों नपर लिखा है. इस मतके गुरु दशही क्षत्रिय होयें है. ब्राह्मण, मुसलमान, जैनी, सूफी, मुसलमान फकीर, जिनकों मारफतवालेन्नी कहते है इनके कुछ कुछ मतकी वातें लेकर रचा है. इनके मतवाले ब्राह्मणोंका बहुत आदर सन्मान नही करते है, जेकर धर्मार्थ जिमणवारनी करते है तो गुरुके शिष्याको नोजन कराते है. इनके मत से एक रामसिंद जाका गुरुके शिष्यने लोदीहानेकुकामतका से दश कोलके अंतरे लागी गामके रहने वालेने - एक नया पंथ निकाला है. तिसमें इतनी वस्तुका निषेध है-मूर्ति नहीं पूजनी १, जीवहिंसा नही करनी ५, मांस नही खाना ३, मदिरा नही पीना ४, जूठ नही बोलना ५, चौरी नही करनी ६, परस्त्रीगमन नही करना ७, जूया नही खेलना, दिन प्रतिमस्तकके केशां सहित स्नान करणा ए, ब्राह्मणसें विवाह नही करना १०, विवाहमें सवा रुपैया खरच करना ११; जबसें स्वरूप. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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