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अज्ञानतिमिरनास्कर. अपरिमित पाप नष्ट हो जाता है. जबतक शिवका पूजन न होते है, तब लग पाप रेहेते है. ५ जो पुरुष शिवलिंगकी पूजासे रहित है नसकी सब क्रिया निष्फल होती है, तिसवास्ते सर्वअर्यकी सिविका अर्थ लिंगपूजा करनी चाइए ६ सर्ववर्णाश्रमवाले लोक कलियुगमें पार्थिवलिंग पूजनेसें शंकरकी सायुज्यमुक्ति पामते है. ७. बीलीका वृक्ष देखनेसे स्पर्शकरनेसें और वंदन करनेसे अहोरात्रका पाप नाश पामते है. नसमें कुरानी संशय है नही. जो ब्राह्मण रुज्ञक धारण कर्या विना जो कुठ वेदका कर्म करते है सोब्राह्मण मोहसें नरकमें पड़ता है. ए तीन लोचनवाले और त्रिपुरकानाश करनेवाले शंकर सर्व देवोका देव है. ब्रह्मा विष्णु प्रमुख सर्व देवता नसकाज अनुचर है. १० सांब शंकरकुं गोड कर जो उसरा देवताकी पूजा करते है, सो मोहसें घोर संसार में पड़ते है. ११ हे मुनिवर, में सत्य कहेता हूं के शंकरका चरणकी पूजा करने में जो तत्पर होवे सो धन्य है, उसरा धन्य नही है. १२ शंख और चक्र तपा कर जिसका देह दग्ध होता है, सो जीवता शब जैसा है. सर्व धर्मसें बाह्य सो पुरुष त्याग करने के योग्य है. १३ जिसका शरीर तप्त मुझसे अंकित है, सो सर्व पीमाका नोगी होकर कोटी जन्ममें चांडाल होता है. १४ जो पुरुष नक्तिसें पंचादर मंत्र साथ एक दफे शिवकी पूजा करते है, तो पुरुष शिवमंत्रका गौरवसें शिवका धाममें जाता है. १५ जो पुरुष श्राते पंचाकर मंत्र सहित बीली पत्रसें शिवपूजा करते है, सो पुरुष शाश्वत स्थानमें जाते है. १६
तथा वल्लनाचार्यने इतने शास्त्र सच्चे माने है-“वेदाः श्रीकृष्णवाक्यानि व्याससूत्राणि चैव हि । समाधिज्ञाषा व्यासस्य प्रमाणं तच्चतुष्टयं ॥ नत्तरोत्तरतो बलवान्-अर्थ-वेद, गीता, ब्रह्म
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