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अज्ञानतिमिरनास्कर. इध्मश्च मे बर्हिश्च मे वेदिश्च मे धिष्णियाश्च मे०॥ शतरुीय ॥
___ उपर मंत्रका मूल बताया है परंतु मंत्रतो दो तीन वर्गतक लंबा है. इससे यज्ञमें काम आवे ऐसी सामग्री महादेवसे मांगी है. इससे ऐसा मालुम होता है कि आगे हिंसक यज्ञ करनेकी बदुत चाल थी.
प्रथमतो इस जगत नरतखममें इस अवसर्पिणी कालमें श्री आदीश्वर नगवानने जैनमत प्रचलित करा तिस पीछे मरीचि के शिष्य कपिलनें अपने अपने आसुरी नामा शिष्यको सांख्य मतका उपदेश करा, तब सांख्य मतका षष्टि तंत्र शास्त्र रचा गया. तद पीछे नवमें सुविधिनाथ पुष्पदन्त अईतके निर्वाण पी जैन धर्म सर्व नरतखममें व्यवच्छेद हो गया. तिसके साथ चारों आर्य वेदनी व्यवच्छेद हो गये. तब जो श्रावक ब्राह्मणके नामसे प्रसिइथे वे सर्व मिथ्यादृष्टी हो गये. चारों आर्य वेदोंकी जगे चार अनार्य वेदोंकी श्रुतियां बना दीनी. महाकालासुर शांमीच्य ब्राह्म
का रूप धारके हीरकदंबक नपाध्यायके पुत्र पर्वतके साथ मिलके महाहिंसारूप अनेक यज्ञ सगर राजासें करवाये.पीठे व्यासजीने सर्व ऋषि अर्थात् जंगल में रहनेवाले ब्राह्मणोंसें पूर्वोक्त सर्व श्रुतियां एकठीयां करके ऋग्, यजुः, साम, अथर्वण नामक चार वेद रचें. फेर वैशंपायन व्यासका शिष्य तिसके शिष्य याज्ञवल्क्यनें वैशंपायनके साथ तथा अन्य ऋषियोंके साथ लढके शुक्ल यजुर्वेद बनाया. और व्यासके शिष्य जैमिनीने मीमांसा सूत्र रचे. पीठे शौनक ऋषिनें वेदा नपर ऋग्विधान सर्वानुक्रम इत्यादिक ग्रंथ रचे है. और शौनक ऋषिके शिष्य आश्वलायनने ऋग्वेदका सा. रनृत आश्वलायन नामक १२ बारें अध्यायका सूत्र रचा. शौ
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