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________________ प्रथमखम. नकस्य तु शिष्योऽनूत् नगवान् श्राश्वलायनः । कल्पसूत्रं चकारायं महर्षिगणपूजितः”। इसी तरें अकेक शाखाकें अपने अपनें वे दों नपर अनेक आचार्योनं कात्यायन, लाटयायन, आपस्तंब, हिरण्यकेशी प्रमुख अनेक सूत्र रचे है. इन सूत्रोंमेंनी महा जीव हिंता करनी लिखी है. इन सूत्रोंसे श्लोकबह स्मृतियां बनाई गई है. वे मनु, याज्ञवल्क्य प्रमुख है. मनु १ याज्ञवल्क्य विष्णु ३ हरित ४ नशना ५ शांगिरस ६ यम ७ आपस्तंब संवर्त एकात्यायन १० बृहस्पति ११ व्यास १२ शंखलिखित १३ दक्ष १४ गौतम १५ शतातप १६ वशिष्ट १७ इत्यादि अन्यन्नी स्मृतियां नवीन रची गई है. इनमेंनी हिंसा करनी लिखी है. स्मृतियोमें वेद और सूत्र एक सरीखे माने है. और उ वेदके अंग माने है. तिसमें व्याकरण वेदका मुख कहेलाता है और सूत्न हाथ, ज्योतिष नेत्र, शिक्षा नाक, बंद पग, निरुक्त कानके कहे जाते है. इस तरेसें वैदिक धर्म चलता रहा क्योंकि पूर्वके ऋषिलोक सर्वज्ञ ठहराये. ननके वचनोंमें कोई तकरार न करे. तिसको नास्तिक, वेदबाह्य, राक्षस इत्यादिक कर देते थे इस वास्ते बहुत वर्ष तक हिंसक यज्ञ याग करनेकी रीती चलती रही. जब बीच बीचमें जैनमतका जोर बढा तब लोगोंकी कर्म अर्थात् वैदिक हिंसक यझोंसें अक्षा नठ गई. लोगोंकों हिंसा बुरी लगी तब विचार करा कि हजारों देव और हजारो अनुष्ठान और हिंसा ये ठीक नही तिससे ब्रह्मजिज्ञासा नत्पन्न दुई. तिस वास्ते नपनिषद् बनाये और तिनमें यह वचन दाखल करे. __ अधीदि भगवन ब्रह्मेति ॥ नकर्मणा न प्रजया धनेन त्याग के अमृतत्वमाशुः ॥ ब्रह्मविदाप्रोति परम् तदोजिज्ञासस्व यतो वा इमानि भूतानि जायते ॥ अथातो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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