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प्रथमखंड.
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नमोस्तु सर्वेभ्यो ये केचन पृथ्वी मनु । ये अंतरीक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्वेभ्यो नमः ॥ होता यक्षदाश्वनौ छागस्य वपाया मेदसो जुषेता ५ हविहोतयजहोता यक्षसरस्वतीमेपस्य वपाया मे० होता यक्षादद्रमृषभस्य वपायामे० २१-४१ ॥
यास्मभ्यमरातीयाद्यश्वनो द्वेषते जनः निद्राद्यौ अस्मान्घिप्साच्च सर्वतं भस्मसात्कुरु अध्याय ११ | ८० ॥
ये जनेषु मलिम्लवस्तेनासरतस्करावने ॥ यकक्षे वधा यस्तांस्तदेधामि जंभयोः ॥ श्रध्याय ११ - १९ ॥ शुक्लयजुर्वेद संहिता ॥
भावार्थ -- प्रथम मंत्र में सर्पाकी स्तुति, दूसरे मंत्रमें वपा अ र्थात् कलेजेका यज्ञ करना. तीसरेमें शत्रुयोंके नाश करनेका मंत्र है, और चौथे में चोरांके नाश करनेका वैदिक पुस्तकों में जे देवते है और तिनको उपासना प्रार्थना जो है सो गृह्यसूत्रकी दूसरे प्रध्यायकी चौयी कांडिका प्रथम सूत्रमें तर्पण करणेंके देवतायोंकी यादगीरी लिखी है, सो देख लेनी तिसका नमुना नीचे मुजब देते है. प्रजापति १ ब्रह्मा २ वेद ३ देव ४ ऋषिए सर्वाणि बान्दांसि ६ ॐकार ७ वषट्कार ८ व्याहृतयः एए सावित्री १० यज्ञ ११ द्यावापृथिवी १२ अंतरीक्ष १३ अहोरात्र १४ संख्या १५ सिद्धा १६ समुझ १७ नद्यः १० गिरयः १९ क्षेत्रोपविवनस्पतिगंधर्वाप्सरसो २० नाग २१ वयांसि २२ गावा ५३ साध्या २४ २५ या २६ रक्षांसि २७. इस समय के बुदिना देवताका खोड काढें और सर्प, नाग, पर्वत, नदी, वासं व्यादति,
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