________________
उज्
अज्ञानतिमिरजास्कर.
पति ए. इस मूजब कर्म नही करना और संसर्ग दोष नही और बाना पाप होवे सो पाप नही गिनना, संन्यास तथा अग्निहोत्र वेद तथा वर्ग तक रहे तह तक करना.
नपरके लिख कर्मोनसे कितनेक अ चलते और कितनेक नदी चलते है, जो चलते है वे ये है. मामेकी बेटी विवाद करते है १. बडे नाईक बड़ा हिस्सा देते है २. जावजीव ब्रह्मचारी रहते है ३. सन्यास है ४. अनिहोत्री ब्राह्मण है ५. समुझमें जाते
६. संसर्गदोष गिनते है . महाप्रस्थान अर्थात् जन्म तक यात्रा करते है . मांजरानी गौमत्राह्मण, सारस्वत, कान्यकुब्ज, मैल और कितनेक नत्कलनी करते है ए पंचाविरुमें यज्ञयागादिक कर्म में मांसभक्षण करते है १०. कलियुगमें अश्वमेध करएका निषेध है तोजी राजा सवाई जयसिंहे जयपुरमें कराया ११. तोमविक्रय और शानित्र ये १२ । १३ कितनीक जंगें होते है. इस वास्ते सर्व शास्त्र ब्राह्मणोनें स्वेच्छासें जो मन माना सो लिखके बना लीये. जहां कही अमचल पमी वहीं नवा शास्त्र अपने मतवालाका बनाके खडा कर दीया अथवा नव श्लोक बनाके पुराणे शास्त्रोंमें मिला दीये. इस वास्ते एक पुराणकी प्रतिमें चार श्लोक अधिक है तो दूसरीनें दश अधिक है. जैसे जैसे काम पडते गये वैसे वैसे बनावट के श्लोक मिलाते गये. श्लोक स्मृतियोंमेंजी ऐसी ही गरम करं दीनी है. और इन पुराणों में ऐसे ऐसे कथन लिखे है कि जिसनें सुननेसें श्रोताजी लज्जायमान हों जावे. और बुद्धि उत्पन्न हो जावे. और ऐसे ऐसे नतपटंग कान माने. पुराणोदिमें नही बलके वेदो में महाहतक वज्जनीय पुनरुक्त निरर्थक बहुत वचन है सो उपर लिख आये है. श्रोसें आगेजी लिख दिखाते है.
जिस है कि कार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org