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मृगमेशशककूर्माऽरण्यवराहमांसानि तित्तिरिलावकवर्त कशल्ल कीकराः एषां पक्षिणां मांसानि क्रकरः करात इति प्रसिद्धः वार्धिणसं मांसं " त्रिपिबंत्विं प्रहीणं श्वेतं वृद्धं प्रजापतिं वार्धिसं तुतं मर्याशिकाः पितृकर्मणि” कृष्णग्रीवो रक्तशीर्षः श्वेतपदो विहंगमः । स वै वाणिसः प्रोक्त इत्येषा नैगमी श्रुतिः । गगपक्षि णौ वार्धिसौ तयोमंसं मंत्रसंस्कृतमांसं यदा बागादिकं पशुमालभ्य मांसमुपादीयते तदा प्रथमं मंत्रेण पशुप्रोक्षणं कर्त्तव्यम् । मंत्रच " ओम् पितृभ्यस्त्वाजुष्टं प्रोकामि ॥ एकोद्दिष्ठे तु पित्रे त्वाजुछं प्रोक्षामीत्यादिरूपः अनासंज्ञपक्षे सिंहादिहतमांसादिषु न मंत्र संस्कारापेकेति सिंहव्याघ्रहतहरिहंमांसं लब्धक्रीतवागादिमांसम् पस्तराद्य निघातवागादिमांसं ॥ अथ मत्स्याः महाशब्करोहितराजीवपाठीनश्वेतशका अन्येपि ॥ काशी के ापेकी पुस्तकके पत्रे १६ ॥
प्रथमखंरु.
अर्थ - श्राविवेक नाम एक पुस्तक है. तिसमें मातपिताके की विधि अनेक प्रकारकी लिखी है. तिनमें श्राद्ध में अनेक प्रकारक जनावरोका मांस भक्षण करना लिखा है, तिनका नाम जंगली भैंस, बकरा, दरिण, रोझ, मींढा, शशा, कटु, जंगली सूयर, और तीतर, लावक इत्यादिक पक्षी और जानवर मंत्रसें पवित्र करी पाणी अंटके ऐसा मंत्र पढनाकि मेरे पितरांके वास्ते तुजकों पवित्र करता हूं. ऐसे पढके तिसका मांस जैना अथवा पशुहिंसा करते योग्य न होवेतो व्याघ्र वा सिंहका मारा हुआ जानवरका मांस लेना, और ऐसा जनावर मिलेतो मंत्र पढने की जरूर नहीं. अथवा मांस मोल दे लेवे . इसी तरे महाशब्क-पाल म राजीव तथा पाठीन इत्यादि श्राद्ध में योग्य है. नवभूति कवि जो नोजराजाके वखतमे दुधा है तिसमें उत्तररामचरित ना
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