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अज्ञानतिमिरनास्कर. टक लिखा है सो प्रसिद है. सरकारी शालामेंनी पढागा जाता है. तिसके चौथे अंकमें वशिष्टके शिष्य सौघातक और नामायन श्व दोनोंका संवाद लिखा है. तिसमें प्रसंग ऐसा है कि राजा दशरथ वशिष्ट मुके घरमें आया तब बडा मधुपर्क वास्ते मारा तब पी जनकराजा आया तब मधुपर्क नही करा. क्योंकि यह राजा निवृति मार्गका माननेवाला था. इसवास्ते मधुपर्क न करा. तिसका संवाद नीचे लिखे मुजब जान लेना.
सौधातक-मया पुतिं व्याघ्रो वा वृको वा एष इति । नांमायण-आः किमुक्तं नवति सोधातक--तेन सा वत्सतरी नकिता नांमायण-समांसमधुपर्क इत्याम्नायं बहुमन्यमानाःत्रिया
याच्याग य वत्सतरी महोदंवा महाजं वा निर्वपंति
गृह मेधिनः ॥ तं हि धर्मसूत्रकाराः समामनंति । सौधातक-येन आगतेषु वशिष्टमिश्रेषु वत्सतरी विशसिता।
अद्यैव प्रत्यागतस्य राजर्षिजनकस्य नगवता वा
स्मीकिनापि दधिमधुन्निरेव निवर्तितो मधुपर्कः नांडायण-अनिवृतमांसानामेवं कल्पमृषयो मन्यते । निवृ.
तमांसस्तु तत्रनवान् जनकः ॥ अर्थ-राजादशरथने जब बदमेका मांस खाया तव सौधातकने कहा. यह राजा व्याघ्र वा नेमीया है. तब नांडायननें कहा. हा यह तुमने क्या कहा. तब सौधाधक बोला-इसने बदमी नक्षण करी तब नांमायन बोला-श्रोत्रिय अर्थात् अग्निहोत्रि ब्राह्मण और अन्यागतके वास्ते बदमी देई जाती है. बमा बलद बा बझा बकरा गृहत्य पूर्वोक्तो मधुपर्कके वास्ते मारके देता है. तिस
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