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________________ प्रथमखम. वेद मिलके सर्व १६ सोलें और सत्तरमी अग्नि इतनी सामग्री यज्ञकी वेदमें लिखी है. तिससे प्रथम मनुष्य यज्ञ करने लगे. ये सर्व पदार्थ यज्ञार्य करे है. ऐसे वेदोमें लिखा है. इसीतरे सर्व वेद सिह पुरुष महाऋषि इनका यही कहना है तो फेर इसमें पातक कहांसें होय ? यझसे परजवमें अा होता है. शांतिपर्वमें इसतरे कथा २६७ में अध्यायमें है. स्यूमरश्मि ऋषि कहे है, कि सर्व जीव माताके आश्रयसें जीवते है. तिसीतरे गृहस्थके आश्रय सर्व साधु जीवे है. गृहस्थसे यज्ञ होता है. तप होता है, तिस वास्ते गृहस्थाश्रमी लोक धर्मका साहाय्य देते है. यह सर्व शास्त्रानुसारे मैंने कहा है. इसतरें कया २३ए में अध्यायमें है. धर्मराजा कहता है, हे आचार्य ! अहिंसा बसाधर्म है ऐलेजो बहुत वार तुमने कहा है, और तुमनेही श्राइमें अनेक प्रकारका मांस खानेकी बुटी दिनी है.तब हिंसा करां विना मांस क्योंकर मिल सकता है. मेरा यह संशय दूर नहीं होता है इस वास्ते इस बातका खुलासा करो, नोष्मने नत्तर दीना यज्ञ विना और शास्त्रने जो बुटि दी. नी है तिसके विना मांस न खाना इसका नाम प्रवृत्तिधर्म है; परंतु मोदकी श्चा होय तितका यह धर्म नहीं. वेदमंत्रसें पवित्र हुआ और पाणी गंटके प्रोक्षण करा हुआ मांस पवित्र है, तिसके खानेमें पाप नहीं. इस नपरांत मांस नहीं खाना. प्रवृत्ति और निवृत्ति ये दो धर्म ऋषियोंने कहे है. अनुशासनपर्वमें यै कया ११५ में अध्यायमें है. धर्मराजा पूरे है कि हे आचार्य ! क्या खाना और क्या न खाना यह मुजको कहो. नीमने नत्तर दीना कि हे धर्मराजा ! इस पृथ्विमें मांस समान कोई नत्तम पदार्थ नही, जीवको पुष्टि देनवाला, शरीरकी वृद्धि करनेवाला, तोनि तिसके त्याग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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