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अज्ञानतिमिरनास्कर. करने में बहुत धर्म है. वेदाज्ञा प्रमाणे मांस खानेमें दोष नही. क्योंकि यज्ञ वास्ते परमेश्वरने पशु जनावर उत्पन्न करे है, ऐसा वेदमें लिखा है. तिसके विना मांस खाना ये राक्षसी कर्म है अब क्षत्रियका कर्म कहता हूं. तिसने अपने बलसें जीव मारा होवेतो तिसके खाने में दोष नही. अगस्ति ऋषिनेंनी सर्व मृग पदीयोंका मांस दीनाथा. सर्व राजर्षि शिकार करते है. शिकार मारनेमें तिनको पाप नहीं. श्राइमें यज्ञमें मांस खाते है, सो देवोंका न. बिष्ट खाते है. प्राण सर्वकों वल्लन है, इसवास्ते प्राणरक्षण यह वमा धर्म है. अहिंसा पालनेसे सर्व यज्ञ, तप, तीर्थका फल मिलता है. ऐसी कया ११६ में अध्यायमें है.
व्यासजी कहता है. पापी जो है सों यज्ञ तप दानमें पवित्र होता है. राजसूय यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ, नरमेध यज्ञ, ऐसें अनेक प्रकारके यज्ञ है, तिनमेंसे घोमेका यज्ञ तूं कर. पूर्वे रामचंजीनेनी यह यज्ञ कराया. यह कया अश्वमेध पर्वके ३ अध्यायमें है.
बिल्लका, खैरका, देवदारुका अनेक यूप यझमें करेथे, सो. नेकी ईटो बनाईश्री, चयन कुंम सुंदर बनाया था, और एकैक देवताके वास्ते पशु, पक्षी, बैल, जलचर, जनावर सर्व तीनसो ३०० बांधेथे. तिनमें घोमा बहुत शोनावंत दीख पडता था. सिह और ब्राह्मण, व्यासजी और तिसके बहुत शिप्य सर्व कर्मके जापकार और नारदजी बमा तेजस्वी और तुंबरू ऋषिन्नि सन्नामें थे. यह कथा में अध्यायमें है.
वैशंपायन कहता है कि पीछे ब्राह्मणोंने सर्व जनावरना मांस रांधके तैयार करा और शास्त्र प्रमाणे घोमेका मांसन्नी रांधा राजा और पदिराजपत्नीकों नपवेशन संस्कार दूा. तदपीछे घोमेका कलेजा काढके ब्राह्मणोंने राजाके हाथमें दीना. तिससे
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