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________________ प्रथम प्रकाश पए शेठना मनमां आ प्रमाणे विचार थयो-" में पूर्वनवे सारा काम करेला हशे, तेथी आ नवमां ते शुज कर्मना बलथी मने आ वृधि पामती समृद्धि प्राप्त थर २. हवे जो हुं आ जवने विषे कां शुज कार्यनी क्रियानुं सेवन करुं तो हुँ पाजो आगामी नवे समृधिना सुखने प्राप्त करनारो था. वली जे आ समृद्धि देखाय , ते पण हाथीना कर्णनी जेम चंचल , माटे आ प्राप्त थयेनी लक्ष्मीने सफल करवाने अने परलोकमां सुख पामवाने अर्थ हुँ एक जिन प्रासाद करावीश, कारण के, शास्त्रने विषे श्री जिनप्रासाद कराववानुं महा फल कहेढुं ३. अने तेथी मोटा पुण्यनी प्राप्ति दर्शावी जे. तेथी प्रथम एज कार्य करी मने प्राप्त थयेन आ मनुष्यनव वगेरेनी सर्व सामग्री मारे सफर करवी - चित जे." आ प्रमाणे चितवन करता धनसार शेउने बाकीनी सर्व रात्रि व्यतिक्रातथइ गइ. ज्यारे प्रनात समय थयो एटले ते धनसारे न्यायथी उपार्जन करेनी पोतानी लक्ष्मीवझे बावन जिनालयवाळु एक जिनमंदिर करावानो आरंज कर्यो. आ कार्यमा प्रतिदिन घणां व्यनो खर्च थवाथी तेना पुत्रे पोताना पिता धनसारने पूज्यु.-" पिताजी, सर्व व्यने नाश करनारं आ वृथा काम केम आरंन्यु डे ? आ काम मने बोलकुल रुचतुं नथी. आ अव्यथी नवा घर, अने नवीन आजूषणो कराव्या होय तो वधारे सारं. कारण के, घर अने आजूषण वगरे को कालांतरे काम आवे . " पुत्रनां आ वचनो शेठ धनसारे जाणे सांजळ्या नहोय तेम काढी नाख्या. तेणे ते उपर बीलकुल ध्यान प्राप्यु नहीं. धनसार शेठे तो नदास सहित चमता परिणामे करी अव्यनो जारे व्यय करी ते जिनालयने पूर्ण कराव्यु, ज्यारे चैत्य पूर्ण थयु, त्यारे को पूर्वना अंतराय कमना उदयथी तेना घरमा रहेना सर्व प्रन्यनो नाश थइ गयो. आ वखते तेनो पुत्र अने बीजा मिथ्यात्वी लोको बोलवा लाग्या के " धनसार शेरे जिनालय कराव्युं, तेथी तेना सर्व व्यनो नाश थइ गयो." ते लोको आम बोलता तोपण जेनुं चित्त जैन धर्मने विष दृढ ने एवो धनसार शेठ पोताना अव्यना प्रमाणमां थोडं थोमु पुण्य कर्या करतो हतो. एक वखते धर्मगुरु नगवान् ते नगरमां पधार्या. धनसार सेमने वंदना क Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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