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________________ श्री आत्मप्रबोध. नगरा गंधवाला, सुगंध वगरना, खाटा गंधवाला, कीमाए वींधेला, जुना अने वासी पुष्पोथी पूजा करवी नहीं. २ हस्ता प्रस्खलितं कितौ निपतितं लग्नं कचित्पादयो र्यन्मूर्योर्ध्वगतं धृतं कुवसनैर्नालेरधो यद् धृतम् । स्पष्टं दुष्टजनैर्धनरनिहितं यद् दूषितं कीटकैः त्याज्यं तत्कुसुमं ददं फल मथो नक्तैर्जिनप्रीतये ॥३॥ हाथथी पमीगये, पृथ्वीपर पमेनुं, पगमा कोइ काणे अमके, मस्तक उपर चमेलु, नगरा वस्त्रोमां लीधेचं, नाजिनी नीचे राखेवू, पुष्ट लोकोए स्पर्शेलं, धनथी हणाएलं, अने कीमाओए दषित करेलं एवं पुष्प, पत्र अने फल जिनेश्वरनी प्रीतिने माटे नक्तोए त्यजी देवू. ३ उपर कहेला दूषित पुष्पोवझे प्रनुनी पूजा करवाथी माणस नीचपणाने पामे जे. तेने माटे कयु डे के, " पूजां कुर्वन्नंगलग्नैर्धरामा पतितः पुनः। यः करोत्यर्चनं पुष्पै रुच्छिष्टः सोऽनिजायते ॥ १॥" अंग उपर बागेला अने पृथ्वीपर पहोगयेला पुष्पोथी जे पुरुष पूजा करे , ते पुरुष नच्छिष्ट थइ जाय जे. एटले नीचपणाने पामे . ? ___ ए कारण माटे उपर कहेला दोषथी वर्जित एवा पुष्पोवमे जिनपूजा करवी. तेवा उत्तम प्रकारना पुष्पोनी पूजाना प्रजावधी जव्य प्राणीना घरने विघे धनसारनी पेठे सर्व सुखवाली समृधिनी वृधि वगेरे प्रगट थाय ने. अने दारिज, शोक, अने संताप आदि पापना उदय दूर था जाय . आ प्रमाणे आ लोकमां फल मोडे अने परलोकमां देव लोकना तथा मोक्षना सुखनी प्राप्ति थाय . पुष्प पूजा विषे धनसारनी कथा. कुसुमपुर नामन नगरने विषे धनसार शेठ रहेतो हतो. ते हमेशा त्रिकाल जिनपूजा वगेरे कार्यो करवामां तत्पर हतो. एक वखते अर्धरात्रे ते धनसार Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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