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________________ २३ रूपकश्रेणि मांरुवावाळाने वेदक थइने कायक प्रथम प्रकाश. ठाणा सुधी ते होय छे. अने थाय ने आठ गुणठाथ श्रेणि मांछे, " सम्यक्त्व केलीवार मुकाय अने केटलीवार ग्रहण थाय. प्रथम मुक्युं पी ग्रहण कर्यु, एवं जे सम्यक्त्वादि ते गृहीतमुक्तने आकर्षा कदेवाय बे. ते सम्यक्त्व केटलीवार ग्रहण थाय ने केटली वार मुकाय, ते दर्शाa. ते साथ एक जीवने एक नवमां केटला सम्यक्त्व थाय ते पण जपावे बे. नावश्रुत, सम्यक्त्व अने देशविरति नामना त्रण सामायिकवालाने एक नवमां हजार 'पृथक्त्व होय बे, सर्वविर तिवालाने एक नवे सो पृथक्त्व आकर्षा थायडे. ते उत्कृष्टथी जाणवा. अने जघन्यथी तो एक आकर्ष थाय बे. संसारने विषे रहेला जीवोने सर्व जवमां केटला आकर्षा एटले जीव व्यवहार राशिमां याव्या पछी मोक्षे जाय त्यां सुधीमां केटला आकर्षा थाय ते वात जावतां कहे छे के, अनेक नवोमां एक जीवने त्राण नावश्रुतादिकना असंख्याता हजार पृथक्त्व आकर्षा थाय बे एटले सर्व भवनी अपेक्षायेत्रण नावतादिने उत्कृष्टा असंख्याता हजार पृथक्त्व आकर्षा याय डे. तेमां जे सर्व विरति बे, तेने हजार पृथक्त्व उत्कृष्टा थाय बे, अने अव्यश्रुतवाळाने अनंता आकर्षा थाय छे; कारण, तेमां बेइंडिय आदि मिध्यात्वीनी गणना बे. Jain Education International सम्यक्त्वना दश प्रकार. प्रथम तरा रहित कहेला एवा उपशमादिक पांच प्रकारना सम्यक्त्वने निसर्ग तथा अधिगम साथै गणतां तेना दश प्रकार थाय छे अथवा पनवणा वरेगमने विषे निसर्ग रुचि बगेरे भेदथी दश प्रकारना सम्यक्त्व कहेला बे, तेना नाम आ प्रमाणे डे. १ निसर्गरुचि, २ उपदेशरुचि, ३ आज्ञारुचि, ४ सूत्ररुचि, ५ बोजरुचि, ६ अभिगमरुचि, ७ विस्ताररुचि, क्रियारुचि, संक्षेपरुचि ने १० धर्मरुचि. ते दश प्रकारना सम्यक्त्वनुं विवेचन. १ बेभी लइने नव ध कहेवामां पृथक्त्व शद्ध वपराय छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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