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श्री आत्मप्रबोध. स्रोकने विषे वावीश सागरोपमनी स्थितिए त्रणवार जवानी अपेक्षाए कही जे. जे साधिक-(अधिक सहित ) एम कहेवामां आव्युं छे, ते मनुष्य नवना आयुष्यनो प्रक्षेप करवायी जाणवू. आ सर्व उत्कृष्ट स्थिति जाणवी. जघन्य स्थिति तो वेदक, उपशम अने सास्वादन-ए त्रणेनी एकज समयनी स्थिति के अने दयोपशम तथा दायक ए बेदना वे सम्यक्त्वनी स्थिति जघन्यपणे अंतर्मुहूर्तनी
. आप समयथी मांझीने बे धीमां एक समय ओडो ते अंतर्मुहूर्त कहेवाय जे. ते अंतर्मुहूर्त्तना असंख्याता नेद छे.
सम्यक्त्त्व केटली वार पमाय . " नकोसं सासायणं नवसमियं हुं ति पंचवाराओ। वेयग खश्गाश्कासि असंखवारा खनवसमो” ॥ १ ॥
"श्रा संसारने विषे उत्कृष्टथी सास्वादन अने उपशमिक सम्यक्त्त्व पांच वार होय . पण ते प्रथम एकवार उपशम सम्यक्त्व प्राप्त थाय त्यारे चार वखत उपशम श्रेणीनी अपेक्षाए होय . वेदक तथा दायक सम्यक्त्त्व एकजवार होय डे अने श्योपशम सम्यक्त्त्व असंख्यातिवार होय , ते पण बहु नवनी अपेक्षाए समजवू."
कये गुणस्थानके कयुं सम्यक्त्व होय . "बीयगुणे सासाणो तुरियाइसु अग्गिारचउचनसु । नवसमखायगवेयगखाओवसमा कमा हुँति" ॥१॥
सास्वादन सम्यक्त्त्व वीजे गुणगणे होय जे. अने उपशम सम्यक्त्त्व चोथासम्यकऽष्टि गुणगणांथी अगीयारमा गुणगणा सुधी आठ गुणस्थानके एटले अविरतिथी लश्ने उपशांतमोह गुणगणांसुधी उपशम सम्यक्त्व होय छे तथा चोथा गुणस्थानथी अयोगी गुणस्थानना अंग सुधी अगीयार गुणगणे दायिक सम्यक्त्व होय जे. चोथा गुणगणांथा लश्ने अप्रमत्त गुणगणानां अंतसुधी वेदक सम्यक्त्व होय तेज चोथा गुणस्यानयी मामीने अप्रमत्त गुणस्थान सुधी एटले चार गुणस्थाने क्षयोपशमिक सम्यक्त्व होय डे, अर्थात् सातमा गु
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