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प्रथम प्रकाश.
rial खेलाग्ना धुमाकानी श्रेणीनी जेम प्रदेशनो अनुभव छे. अने उपशम सम्यक्त्वमां विपाक उदयथी तथा प्रदेश उदयथी सर्वथा मिध्यात्वनो अनुवज नथी, माटे ते वनेमां एटलो तफावत बे.
४ सास्वादन - प्रथम कहला उपशम सम्यक्त्वथी पकता एटले सम्यFaथी पतित थतां ते वखते सम्यक्त्वना आस्वादस्वरूपमय थवाय ते सा स्वादन सम्यक्त्व कहेवाय बे. उपशम सम्यक्त्त्वथी परतां बतां ज्यांसुधी मिथ्यात्व न पमाय त्यांसुधी सास्वादन सम्यक्त्व होय ते. ते सास्वादनसम्यक्त्वनो काल जघन्य एक समयनो अने उत्कृष्ट आवळीनो बे.
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ए वेदक – जेणे दपक श्रेणी अंगीकार करेली बे, एवा पुरुषने चार - ingबंधी मिथ्यात्व मिश्र पुंज (वे ) खपावतां अपने क्षायोपशमिक लक्षण रूप शुद्ध पुंजने खपावता, ते शुद्ध पुंजना पुद्गलनो बेल्लो पुद्गल खपाववाने उजमाळ थतां ते बेब्ला पुद्गलने वेदवा रूप जे सम्यक्त्व ते वेदक सम्यक्त्व क देवाय बे. ते सम्यक्त्व एक समयनुं छे. वेदक सम्यक्त्व पाम्या पत्री अनंतर समraायिक सम्यक्त्व अवश्य प्रगट थाय बे.
ते पांचे सम्यक्त्वना कालनो नियम कहे.
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तत्समो व सासाणवेअगो समय । सादीयतित्ति सायर खोडुगुणो खओवसमो ॥ १ ॥”
उपशम सम्यक्त्वनो काल अंतर्मुहूर्तनो बे, सास्वादन सम्यक्त्वनो काल वलीनोबे, वेदकनो काल एक समयनो बे, कायक सम्यक्त्वनो काल तेश्रीश सागरापेथी कांइक अधिकनो बे ने क्षयोपशम सम्यक्त्त्वनो काल बासठ सागरोपमrtain धिक एटले क्षयोपशमनो कायकना करतां बमणो काल बे. आ उत्कृष्ट काल कहेलो े. दायक सम्यक्त्वनी स्थिति जे तेत्रीश सागरोपमथी अधिक कली, ते सर्वार्थ सिद्धादिकनी अपेक्षाए संसारने आश्रीने समजवी
सिद्ध अवस्थानी अपेक्षा ए तो तेनी सादि अनंत स्थिति जालवी. जे क्षयोपशमनी मणी स्थिति कहीं बे, ते विजयादिक अनुत्तर विमानने विषे तेत्रीश सागरोपमनी स्थितिमां वे चार जवानी अपेक्षा ए कही बे. अथवा बारमा दे
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