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________________ प्रथम प्रकाश. कारण के, अनन्य जीवोने पूर्वधर सब्धिनो अनाव , तेथी ते मात्र अव्यश्रुत मेलवे . कोई मिथ्यात्वी नव्य जीव तो ग्रंथिदेशमा रही कांइक ऊणा दश पूर्व मुधी अव्यश्रुत मेलवे जे, एथीज कांक ऊणा दशपूर्व सुधी श्रुत पण मिथ्याश्रुत थइ जाय. कारण के, ते मिथ्यात्वीए ग्रहण करेल , अने जेने पूर्ण दशपूर्व श्रुत थाय तेने निश्चे सम्यक्त्व थाय डे, अने बाकीना कांश जणा दशपूर्वधर वगेरेमां सम्यक्त्त्व थवानी जजना ने एटने सम्यकत्व थाय अथवा न पण थाय. तेने माटे कल्पनाष्यमां नीचे प्रमाणे कडं जे“चन्दस दसय अनिन्ने, नियमा सम्मं तु सेसए नयणा." __ए पी कोइ महात्मा के जेने परम निवृत्ति-मोदनुं सुख नजीक ने अने जेना अनिवार्य वीर्यनो वेग घणीरीते नस्लास पामेलो बे, ते महात्मा तीदण खम्गनी धारानी जेम परम शुछ अध्यवसाय विशेष रुप अपूर्वकरणवडे जेनुं स्वरूप कहेवामां आव्युं डे, एवा ग्रंथिनो नेद करी अनिवृत्तिकरणमां प्रवेश करे बे. त्यां प्रतिसमये शुफ थतो ते तेज कर्मोने निरंतर खपावतो अने उदय आवेता मिथ्यात्वने वेदतो ते जे उदय आवेल नथी तेने उपशम करवारुप अंतर्मुहूर्त कालना प्रमाणवाला अंतरकरणमा प्रवेश करे . ते प्रवेश करवानो विधि आ प्रमाणे जे. अंतरकरणनी स्थितिना मध्यमांथी दलिया लइ ज्यांसुधी अंतरकरणना दलीया सघळा क्षय पामे त्यांसुधी प्रथमनी स्थितिमा नांखे . एवी रीते अंतमुहर्तना काले करी सर्व दलियानो कय था जाय जे. ते पछी ज्यारे ते अनिवृचिकरण समाप्त थाय अने उदीरणा करेल मिथ्यात्वने जोगववाथी दीण थतां, अने नहीं उदीरणा करेल मिथ्यात्वने परिणाम विशेषथी रोकतां खारी जमीननी जेम मिथ्यात्वनो विवर पामीने एटले जेम संग्रामने विषे मोटो सुन्नट वैरीनो जय करीने अत्यंत आव्हादने पामे तेम कर्मे आपेला मार्गने पामीने परम-उत्कृष्ट आनंदमय अने अपौद्गलिक एवा उपशम सम्यक्त्वने पामे . ज्यारे जीव उपशम सम्यक्त्वने पाम्यो ते वखते जेम उन्हाळाना तापमां तपाइ गयेसो कोई जीव बावनाचंदनथी अत्यंत शीतळताने पामे , तेम ते जीवने उपशम Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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