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________________ ४०५ श्री आत्मप्रबोध. ए लावेला आहारने ग्रहण करवो नहीं इत्यादि जिनाझा छे; ते ते आझाोने ते जैनानासोए मूलमांथी उन्मूलन करेली छे. ___ आवा ते जैनानासोनो सर्वथा परिचय करवो न जोइए. कारण के, तेम करवाथी तत्काल सद्भूत एवा सम्यक्त्व रत्ननी मलिनतानी प्राप्ति थाय छे. जेमना मनमां कदि शंका उत्पन्न थती होय तेमणे सिद्धांतमां कहेला अनेकांत मार्गने अनुसरी तेनी परीक्षा करवी; परंतु मात्र बाह्य क्रियामां अनुरक्त थq नहीं; कारण के, तेओना करतां पण अधिक एवा अभव्यों आ संसारने विषे जमता थका अनंतवार बाह्य क्रिया कर्या करे . वली आगमने विषे सद्झाननी अपेक्षाए क्रियानी गौणता कहेली . तेनी व्याख्या श्री जगवतीजीना आठमा शतकना दशमां उद्देशमां आ प्रमाणे आपेली - ___“मए चतारि पुरिसजाया पन्नत्ता तथ्थणं जेसे पढमे पुरिसजाए सेणं पुरिसे सीखवं असुयवं उवरए अविनाय धम्मे एसणं गोयमा ! मए पुरिसे देसाराहए पन्नत्त तथ्यणं जेसे दोच्चे पुरिसजाए सेणं पुरिसे असीलवं सुतवं अणुवरए विलायधम्मे एसणं गोयमा मए पुरिसे देसविराहए पन्नत्ते तथ्यणं जेसे तच्चे पुरिसजाए सेणं पुरिसे सीतवं सुतवं नवरए विमायधम्मे एसणं गोयमा! मए पुरिसे सव्वाहारए पन्नत्ते तथ्थणं जेसे चउथ्ये पुरिसजाए सेणं पुरिसे असीलवं असुतवं अणुवरए अविलायधम्मे एसणं गोयमा ! मए सव्व विराहए परमत्ते ॥ अहिं प्रश्न करे छे के, श्री गणांगजोमां जमानि प्रमुख सात निन्हवो कहेला ने तेनी अंदर तो आ अंतर्भूत थता नथी तो पड़ी ते जैनालासोने निन्हवपणुं केम प्राप्त था शके ? " मग्गानेयाश्यं सुच्चा बहवे परित्नस्स" ॥ इत्यादि उत्तराध्ययन सूत्रना वचनना प्रमाणथी दिगंबरनी जेम तेमने प१ गौतम स्वामीने श्रीमद् वीरप्रभु उत्तर आपे छे के 'चार प्रकारना पुरुषो छे A शील अने श्रुत संपन्न - ( सर्वाराधक) B शील असंपन्न अने श्रुतसंपन्न (देशविराधक) C शीलसंपन्न अने शृतअसंपन्न (देशआराधक) D शीलअसंपन्न अने शृतअसंपन्न ( सर्व विराधक).' धम्मेलणं पुरिसे सत्ता तथ्थणं जेसे पार Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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