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________________ चतुर्थ प्रकाश. ४०१ एणं कालंमि अवत्तव्वं " इत्यादि ॥ आवा कारणथी ते विषे वधारे कहेवानी जरुर नथी. वस्तुगतिए पुष्ट मिथ्यात्व रुपी पिशाचे तेमनी कुदृष्टिओने ग्रसेली छे तेथी तेओए ग्रहण करेला असत् पधनी पुष्टिने माटे अनेक प्रकारनी स्वेचायी वत्ती तेत्रो उत्सूत्र प्ररूपणा करता थका लोकने विषे नाव साधुनी उपमाने धारण करता पोताने अने बीजा मंदबुकि जनोने आ अपार संसाररुप समुजमां मुबामे बे, तेथी ते संसाररुप समुधथी जय पामनारा जे जव्य प्राणीओ होय-के जेत्रो पोताना आत्मगुणनी कुशलताने श्वनारा होय तेमणे बगलानी जेम बाह्य क्रियामां तत्पर एवा ते परम अज्ञानी निह्नवोनो परिचय सर्वथा न करवो. कारण, तेवा पुरुषो सूत्रमा विराधक जे. जेश्रो गीतार्थपणाथी आचार्य, नपाध्याय, कुल, गण वगैरेनी निश्राए विचरे में, तेोने सूत्रमा आराधक कहेला डे अने जेओ गीतार्थनी निश्राए विचरता नथी, तेोने विराधक कहेला . ते विषे श्री जगवतीजीमां आ प्रमाणे कहेलै - “ गीयथ्थो य विहारो बीओ गीयथ्यनिस्सिओ नणिो। इत्तो तइयविदारो नाणुन्नाओ जिणवरेहिं " ॥१॥ " पेहेलो गीतार्थ विहार , बीजो गीतार्थ निश्रानो विहार छ अने त्रीजा विहारने माटे श्री जिनेश्वर जगवंते आज्ञा करेली नथी." ___ आधी ते जैनालासोने एक पण निश्रानो असंभव होवार्थी श्री जिना ज्ञातुं विराधकपणुं छे. वळी सिघांतमा योग उपधान वहन कर्या पठी सूत्र पाठ भणवानी आज्ञा आपेनी , तेमां श्रावकोने श्री आचारांग सूत्र जणवानी आज्ञा नयीज. निशीथ सूत्रमा कयु डे के “जो निरकु अन्नतित्थीयं वा गारत्यायं वा वायणं वाइजति वाजंतं साजतिस्स चनम्मासि अपरिहारठाणं इत्यादि" ॥ __“जे मुनि अन्य तीर्थीओ तथा गृहस्थने सूत्रनी वाचना आपे ते मुनि पोतानुं चार मासर्नु चारित्र नाश करे ; तेम वळी साधुआए पाएं करीने साध्वी भानो अर्थ संक्षिप्तपणे भागळ लसवामां भावेल के. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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