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________________ ४०० श्री आत्मप्रबोध. कहेवानुं के, श्री नंदी सूत्रने विषे साक्षात् कहेला आगमोनुं उत्थापन करी ते बत्रीश आगमोनेज प्रमाण मानवामां कोनी आझा छे ? कदि तेओ कहेशे के तेवा प्रकारना उत्कृष्ट प्रमाणे करी अमो कहीए बीए, तो ते कहें तदन प्रयुक्त बे; कारण के, हाल तेवा प्रकारना ज्ञाननो असंभव बे. तेम वली च्या काळने विषे श्री वीरवाणीमां विश्रांत थयेला, अने तेमनी परंपरामां उत्पन्न थयेल आज्ञाने अनुसारे वर्त्तमान काळना वर्त्तता सर्व सिद्धांतना लेखक महोपकारी श्री देवकिंगणि क्षमाश्रमणे सर्व साधुओने संमतिथी जे सिद्धांतो पुस्तक रूपे स्थाप्या बे, तेमने उत्पाथन करनारा ते जैनानासोने जिनाशानुं विराधकपणुं प्रगट प्राप्त थयुं छे. तेमज आगमने विषे प्रमाण करेला निर्युक्ति, चूणी, जाप्य, वृत्ति प्रमुखने उत्थापन करवाथी जिनाशानुं विराधकपणुं अवश्य प्राप्त थयेलुं छे, तेप्रो कहे बे के नगवती सूत्रांप्रमाणे लख्युं बे “सुतथ्यख पढमो बीओ निज्जुत्तिमीसिओपिओ तोय निरवसेसो एस विहि होइ अणुओगो” ॥ १ ॥ ते जैनानासो कहे छे के, अमे फक्त श्री सूत्र अनुसारे प्ररूपणा करीए बीए; तेथे निर्युक्ति वगेरेनुं शुं काम के ? तेना जवाबमां कहेवानुं के, तेमनुंए कहें तदन युक्त बे; कारण के, सूत्रना अति गंभीर आशयने लइने निर्युक्ति आदिना परिज्ञान विना उपदेश करनाराओने नय, निक्षेप, 5व्य, गुण, पर्याय, काल, लिंग, वचन, नाम, धातु अने स्वर आदिनुं परिज्ञान थ‍ शकतुं नथी, पदे पदे मृषावादादि दोषनो संभव बे, तेने माटे श्री प्रश्न व्याकरण सूत्रमां बीजा संवर धारने विषे या प्रमाणे कहेलुं बे "केरियं पुणाइ सच्चं नु जासिव्वं जं तं दव्वेहिं पजवेहिं गुणेहिं कम्मेहिं बहु विदेहिं सप्पेहिं आगमेहिं नामस्काय निवात नवसग्ग तद्धिय समास संधि पद देन जोगिय उणादि किरिया वहाण धान सर विभत्ति वष्णजुत्तं तिकालं दंसविपि सच्चं जह जणियं तदय कम्मुणा होइ डवालसविहाय होइ सोल्लसविद एवमरिहंत अणुन्नायं समस्कियं संज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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