SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५० श्री आत्मप्रबोध. ५ मारी माताना पतिनो नाश होवाथी मारो काको थाय ने ६ अने मारी शोक्यनो पुत्रनो पुत्र होवाथी मारो पौत्र थाय . आ प्रमाणे बालकनी साथे पोताना उ संबंधो देखामी साध्वीए पुनः जणाव्युं, “ १ आ बालकना पितानी अने मारीमाता एक होवाथी ते मारो नाइ थाय , २ आ बालक मारी मातानो नत्तार होवाथी मारो पिता थाय , ३ आ मारा काकानो पिता होवाथी मारो दादो थाय , ४ ते पूर्वे मने परणनारो होवाथी मारो जार थाय छे, मारी शोक्यनो पुत्र होवाथी मारो पुत्र थाय ने अने मारा दियरनो पिता तेथी ते मारो ससरो थाय डे. हवे आ बालकनी माता मारी प्रसव करनारी होवाथी ? ते मारी पण माता थाय छे, २ ते मारा नाश्नी वहु तेथी नानी थाय , ३ मारा काकानी माता होवाथी ते मारी दादी थाय , ४ मारी शोक्यना पुत्रनो वहु होवाथी मारी वधू थाय छे. ५ मारा नारनी माता तेथी ते मारी सासू थाय , ६ अने मारा जारनी बीजी स्त्री, तेथी मारी शोक्य थाय छे. ए बालकनी माता कुबेरदत्ता वेश्यानी साथे मारा पोताना उ संबंध थाय . आ प्रमाणे कही ते कुबेरदत्तना आत्मानो नकार करवा पोते राखेशी पेली मुजा तेनी आगळ प्रगट करी बतावी. कुबेरदत्त ते मुघा जो विचारमां पमा गयो अने साध्वीए बतावेला सर्व संबंधोने विरुछ जाणी तेना हृदयमां वैराग्य नावना प्रगट थइ आवी. आत्मनिंदा करता ते कुबेरदत्ते पोतानी शुछिने माटे विचार करी तत्काल दीक्षा ग्रहण करी अने ते महान् तपस्या करवाने प्रवो. • आ प्रवृत्ति जाणी कुबेरसेना वेश्याए पण प्रतिबोधने पामी श्रावकधर्म अंगीकार कर्यो. साध्वी कुबेरदत्ता या प्रमाणे तेमनो उद्धार करी पोतानी प्रवर्तिनी पासे चाट्या गया. अनुक्रमे ते सर्वे जीवो पोताना धर्मने सम्यक् प्रकारे आराधी उत्तम गतिना जाजन थया हता. अढार संबंध उपर कुबेरदत्तनुं दृष्टांत आ प्रमाणे -आ अढार संबंधो एक जवने आश्रीने बताव्या जे. अनेक नवनी अपेक्षाए तो प्राये करीने सांव्यवहारिक एटले व्यवहार राशिवाळा जीवोनो एकेको संबंध अनंतीवार थयो, तेमज श्री जगवती सूत्रना वारमा शतकना सातमा उद्देशमां कयुं ने के," अयणं नंते जीवे, सव्व जीवाणं माइत्ताऐ” इत्यादि । Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy