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________________ तृतीय प्रकाश. ३५७ साध्वीनो योगयतां तेीनी पासे दीक्षा ग्रहण करी. संयमने प्राप्त करी तेली ए एवो तप आचर्यो के, जेथी निर्मल अध्यवसायने लड़ने तेणीने अल्प समयमा अवधिज्ञान उत्पन्न थइ त्र्यायुं. एक वखते ते कुबेरदत्ता साध्वीजीए अवधिज्ञानना वलर्थी पोताना जाइनुं स्वरूप विलोक्युं तेवामां तेणीना जाणवामां त्र्याव्यं के, पोतानो जाइ कुबेरदत्त मथुरामां पोतानी माता साथे आसक्त थयो बे, अने तेनाथी एक पुत्र उत्पन्न थल्लो बे. या स्वरूप जाणी तेणी कर्मनी गतिने धिकार आपी पोताना बंधुने ते कार्यरुप महापापमांथी मुक्त करवा ने तेना आत्मानो उच्चार करवा मथुरानगमां आवी. ते नगरीमां कुबेरसेना वेश्याने घेर जइ धर्मलान आशीष आपी, तेलीए रहेवा माटे आश्रय माग्यो. कुवेरसेनाए कयुं, " हे महा सती, हुं वेश्या हुं तोपण हम एक नर्त्तारना संयोगथी कुलीन स्त्री बनी हूं; तेथी तमे सुखे कररी मारा घरनी नजीक निरवद्य श्रयने ग्रहण करो अने उपदेश आपी मोने सदाचारमां प्रवतो. वेश्यानां या वचनो उपरथी कुबेरदत्ता साध्वी पोताना परिवार साथे ते वेश्याना घरनी पासे वास करीने रह्या हता. वेश्या कुबेरसेना दररोज ते साध्वीनी आगळ पोताना बालकने लोटतो मुक्ती त्यारे अवसरने जाणनारा साच्ची ते बालकने आ प्रमाणे बोलावता हता, " अरे बालक, १ तुं मारों जाइ बे, २ तुं मारो पुत्र बे, ३ मारो दीयर छे, ४ मारो मत्री जो बे, ए मारो काको बे ने ६ मारो पौत्र बे. तारो जे पिता ते १ मारो जाइ बे, २ मारो पिता छे, ३ मारो दादो बे, ४ मारो जतार बे, ए मारो पुत्र छे, अने ६ मारो ससरो पण छे. वली जे तारी माता ते ? मारी माता बे, २ मारी दादी बे, ३ मारी जाजी बे, ४ मारी पुत्रवधू डे, ए मारी सासू बे ने ६ मार। शोक्य पण छे. एक बखले कुवेरदत्ते आ वचन सांगळी विस्मय पामी साध्वीजीने आ प्रमाणे पुत्रयुं, " साध्वीजी, तमे आवा अयुक्ति वचनो केम बोलो बो ? ते वखते साध्वीजी बोल्या, "जाइ, हुं जे वोलुं लुं, ते युक्तज बे, प्रयुक्त नयी. सांजळो, १ बालक ने हुं एक माताना बीए तेयी ते मारो जाइ थाय बे, १ ते मारा नर्त्तानो पुत्र होवाथी मारो पुत्र थाय बे, ३ ते मारा जरिनो नानो जाइ होवाथी मारो दियर याय बे, ४ मारा जाइनो पुत्र होवाथी मारो मत्री जो थाय बे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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