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श्री आत्मबोध.
अने मुनि उपर एकांते वात्सव्य राखे, तेथी श्रावक मुनिने मातापिता समान थाय बे. " १
हवे श्रावक जाइ समान केवी रीते थाय छे ? ते कहे बे" हियए ससिहोच्चिय मुणीण मंदादरो विण्यकज्जे । भाउसमा साहूणं परानवे होइ सुसहाओ " ॥ १ ॥
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“ मुनिने माटे हृदयने विषे स्नेहवालो, विनय कार्यमां मंद आदरवाळो पराजवमां सहायभूत थनारो श्रावक मुनिने नाइ समान छे, १ श्रावक मित्र समान केवी रीते ते कहे बे.
" मित्तसमाणो माणादिं रूस अपुच्छिन कजे । मन्नतो अप्पाणं मुणीए सयणाउ अप्नादिअं " ॥१॥
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मुनिने पोताना कुटुंबथी अधिक मानतो ने मानादिकने विषे रोष करनारो ने पुछा वगर कार्य करनारो, ते श्रावक मुनिने मित्र समान
छे. १
श्रावक मुनिने शोक्य समान केवी रीते थाय बे ? ते कहे बे
यो बिप्पेही पमाय खलियाण निच्चमुच्चरइ । सो सवप्पो साहुजणं तसमं गणइ” ॥ १ ॥
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" स्तब्ध, मुनिना छि जोनारो, 'या मुनि प्रमादी ने स्खलित छे' एम नित्य बोलनारो, ने साधुजनने तृण समान गणनारो श्रावक मुनिने शोक्य समान वे. १
श्रावकनुं संक्षिप्त आन्हिक.
"प्रबुध्य दोषाष्टमभागमात्रे स्मृत्वोज्वलां पंचनमस्कृतिं च । व्यापृतोऽन्यत्र विशुद्धचेता धर्मार्थिकां जागरिकां स कुर्यात् | १ |
" रात्रिने मे जागे एटले चार घमी रात्रि बाकी रहे त्यारे श्रावके जागीने उज्वल एवा पंच नमस्कारनुं स्मरण कर पछी वीजा काममां जोमाया
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