SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्‍ श्री आत्मबोध. अने मुनि उपर एकांते वात्सव्य राखे, तेथी श्रावक मुनिने मातापिता समान थाय बे. " १ हवे श्रावक जाइ समान केवी रीते थाय छे ? ते कहे बे" हियए ससिहोच्चिय मुणीण मंदादरो विण्यकज्जे । भाउसमा साहूणं परानवे होइ सुसहाओ " ॥ १ ॥ 66 “ मुनिने माटे हृदयने विषे स्नेहवालो, विनय कार्यमां मंद आदरवाळो पराजवमां सहायभूत थनारो श्रावक मुनिने नाइ समान छे, १ श्रावक मित्र समान केवी रीते ते कहे बे. " मित्तसमाणो माणादिं रूस अपुच्छिन कजे । मन्नतो अप्पाणं मुणीए सयणाउ अप्नादिअं " ॥१॥ 44 मुनिने पोताना कुटुंबथी अधिक मानतो ने मानादिकने विषे रोष करनारो ने पुछा वगर कार्य करनारो, ते श्रावक मुनिने मित्र समान छे. १ श्रावक मुनिने शोक्य समान केवी रीते थाय बे ? ते कहे बे यो बिप्पेही पमाय खलियाण निच्चमुच्चरइ । सो सवप्पो साहुजणं तसमं गणइ” ॥ १ ॥ ८५ 6 " स्तब्ध, मुनिना छि जोनारो, 'या मुनि प्रमादी ने स्खलित छे' एम नित्य बोलनारो, ने साधुजनने तृण समान गणनारो श्रावक मुनिने शोक्य समान वे. १ श्रावकनुं संक्षिप्त आन्हिक. "प्रबुध्य दोषाष्टमभागमात्रे स्मृत्वोज्वलां पंचनमस्कृतिं च । व्यापृतोऽन्यत्र विशुद्धचेता धर्मार्थिकां जागरिकां स कुर्यात् | १ | " रात्रिने मे जागे एटले चार घमी रात्रि बाकी रहे त्यारे श्रावके जागीने उज्वल एवा पंच नमस्कारनुं स्मरण कर पछी वीजा काममां जोमाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy