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________________ वित्तीय प्रकाश. ए१ जनोनी निंदा, सरख स्वनावी प्राणीओनी मस्करी, पूज्य जनोनी हेलना, बहु जनना विरोधी मनुष्यनो संसर्ग, देशाचारनुं नबंधन कर, विगेरे आ सर्व लोकविरुष जाणवा. __वली श्रावके पासथ्यादिकना अब्रह्म सेवा वगेरे पुराचार जोइने धर्मनी विमुखता करवी नहि. कडं जे के “ पासथ्याईण फुलं अहम्मकम्मं निरिकए तहवि । सिढिलो होश न धम्मे एसो चिय वंचिोति म ।। आ गाथानो अर्थ उपर प्रमाणे जे, मात्र चोथा पदनो अर्थ एवो ठे के, ते विचारो रांक कर्मे करीने उगाणो ने एटले के जेणे कल्पवृक्षना माहात्म्यने नीचं करेलुंडे तथा जे समस्त सुख आपवाने समर्थ छे तेवं आ अपार संसारसमुघमां तारवाने यानपात्र समान अति निर्मल चारित्र पामीने उपर कह्या प्रमाणे प्रवर्तछे-माटे ते कर्मवडे उगायो . वत्री कोइ मुनिने स्खलित जोइने तेनी नपर निःस्नेहपणुं राखे नहीं. परंतु ते एकांतपणे ते मुनिने माता पितानी जेम शिक्षा आपे छे. तेने माटे कहु ने के, " साहूस्स कहवि खलिअं दट्टण न होइ तत्य निन्नेहो । पुण एगते अम्मा पिनव्वसे चोणं देश" ॥१॥ "आ गाथानो अर्थ उपर आवी गयो जे. आयी करीने श्रावक साधुना मातापिता समान डे एम सूचव्यु जे. गणांग सूत्रमा चार प्रकारना श्रमणोपासक श्रावको कहेला -१ मातापि. ता समान, २ नाइ समान, ३ मित्र समान अने ४ सपत्नो-शोक्य समान. ते चार प्रकारना श्रावकोने माटे या प्रमाणे गाथा जे. "चिंतइ मुणिकजाइं न दिट्ट खनियो वि होइ निन्नेहो । एगंत वच्छलो मुणि-जणस्स जणणीसमो सट्ठो॥१॥ " मुनिनुं कार्य चिंतवे, मुनिने स्खलित जोइ स्नेह रहित न थाय Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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