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वित्तीय प्रकाश बगर-एटले गृहकार्यमा लाग्या शिवाय शुफ हृदयवाला था धर्मजागरिका करवी."१
ते धर्मजागरिका शी रीते करवी ? ते कहे - “ कोऽहं का मेऽवस्था, किं च कुलं के पुनर्गुणा निगमाः। किं न स्पृष्टं क्षेत्रं, श्रुतं न किं धर्मशास्त्रं च " ॥१॥
"हुँ कोण बु ? मारी शी अवस्था छ ? मारु कुन शुं ? मारामां केवा गुणो के ? में केवा नियमो कर्या ने ? में क्या क्षेत्रने स्पश्टुं नथी ? अने में शुं धर्मशास्त्र सांजव्युं नथी ?" ?
ते विषे विशेष कहे . रात्रे निजाथी मुखित एवा लोचनवाला श्रावके प्रथम उठी चित्तनी पटुता प्राप्त कर्या शिवाय तेणे चिंतक्यूँ के, हुं कोण हुँ ? हुं मनुष्य बुं के देवता छ ? हुं मनुष्य बुं तो मारी शी अवस्था छे ? हुँ बाल्यावस्थामा छं के यौवन अवस्थामांर्छ? जो यौवन अवस्थामां हो तो मारामां बाब्यचेष्टाओ अने वृद्धचेष्टाओ न थाओ. हुं युवावस्थावानो बुं, तो पनी मारु कुन शुं ? श्रावक कुन बे के बीजं कुल ने ? जो मारुं श्रावक कुल , तो मारामां केवा गुणो छ ? मूत्र गुणो डे के उत्तर गुणो छ ? वली में केवा नियमो-अनिग्रहो धारण करेला डे? उते वैनवे १ जिननुवन, बिव, प्रतिष्ठा, पुस्तक, ५-६-७-७ चतुर्विध संघ, अने ए शत्रुजयादि तीर्थयात्रा-आ नव अक्षणवाला नव देत्रोने विष में क्या केत्रो स्पर्या नथी ? धर्मशास्त्रमा दशवकालिक वगेरेमां में शुं शुं नथी सांजव्यां ? माटे हुं क्षेत्र स्पर्शवाने माटे तथा धर्मशास्त्र सांभळवाने माटे उद्यम करूं. वली ते श्रावक के जेने आ संसारने विषे वैराग्य उत्पन्न थयो , ते दीक्षा लेवानाध्यानने मुकतो नथी. जेने ते समये बीजो व्यापार नथी एटले ते दीवाना अभिवापथी
आ प्रमाणे चिंतवे -" ते वज्रस्वामी प्रमुखने धन्य डे के जेमणे बाल्यावस्थाने विषे समग्र मुःखो जेथी निवारण थाय तेवा संसारना कारणोनो त्याग करी शुक हृदयथ। संयमनो मार्ग सेव्यो ने अने हुं तो अद्यापि गृहस्थावासरुपी पाशमां पमेलो ते मार्ग सेववाने शक्तिमान् थयो नथी; तेथी मारे तेवो शुज दिवस क्यारे
आवशे के ज्यारे हुं मारा आत्माने धन्य मानतो संयम मार्गने अंगीकार करीश." (इत्यादि श्लोकमां कडं नथी तोपण जाणी लेवं.)
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