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श्री आत्मप्रबोध. असंचव जे. तेथी अहि तेमनुं ग्रहण करवामां आव्युं नथी. वनी सम्यक्त्वनी प्राप्तिने समये रहेली कर्मनी स्थिति मध्येथी पट्योपम पृथक्त्व बक्षणरूप स्थितिनो क्षय थवाथी देश विरति प्राप्त थाय . तेने माटे प्रवचन सारोद्धार ग्रंथना श्वएमा घारमां आ प्रमाणे कहेलु जे.
“सम्मत्तमियवद्धे पलिय पुहत्तण सावो हो । चरणोवसमखायाणं सायर संखंतरा हुँति ॥ १ ॥"
जेटली कर्मनी स्थितिमा सम्यक्त्व पामवापणुंडे तेमांथी पट्योपम पृथक्त्व कालनी स्थिति खपावतां श्रावक थाय छे. अने संख्याता सागरोपमे नपशम चारित्र अथवा दायिक चारित्र पामे में एटले देशविरति पाम्या पली संख्याता सागरोपमे चारित्र पामे, ते पळी संख्याता सागरोपमे उपशम श्रेणीने पामे, ते पछी संख्याता सागरोपम जतां कपकश्रेणी पामे अने ते पनी तेज नवमां मोद थाय बे.
ए प्रकारे देशविरतिने रहेवानो काल जघन्यथा अंतर्मुहर्तनो . अने उत्कृष्टथी देशे जणा पूर्व कोटीनो ने एवा प्रकारनी देशविरति जेने विद्यमान , ते देशविरति श्रावक कहेवाय ने ते श्रावकने वे प्रकारना कहेला . विरता अने अविरता. जेमणे देशविरतिपाणुं अंगीकार करेलु , ते आनंदादिक श्रावकोनी पेठे विरता श्रावको कहेवाय . अने जमणे दायिक सम्यकत्त्व अंगीकार करे, जे, ते अविरता कहेवाय . सत्यकि विद्याधर, श्रेणिक तथा कृष्ण वगेरे अविरता श्रावको हता.
आ वीजा देशविरति प्रकाशने विषे जेमणे देशविरतिपाणं अंगीकार करेलु , एवा श्रावकोर्नु स्वरूप कहेवामां आवे . तेनु निरूपण करवा माटे प्रथम श्रावकनी योग्यताने दर्शावनारा तेना एकवीश गुणो कहे जे. "धम्मरयणस्स जुग्गो अखुदो रूबवंपगइ सोमो। लोगप्पिओ अकूरो नीरु असगे सदकिन्नो ॥ १ ॥ लज्जाबुओ दयाबू, मझत्यो सोमदिति गुणरागी। सकह सुपरकजुत्तो सुदीहदस्सी विसेसन्नू ॥२॥
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