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________________ १२४ श्री आत्मप्रबोध. वखावा योग्य बे. जेमके नमरो काष्टने बोले े. अने पुष्पाने बोलतो नयी. १ तेथी या गामना दुष्ट लोकोने हुं कष्टमां पामीश. " याप्रमाणे विचारी ते मुनिए कोपथी आकुल-व्याकुल यइ कोइ बायावाला प्रदेशमां उना रही उत्थानश्रुत गणवानो प्रारंभ कर्यो. जे उत्थानश्रुतम उद्वेगने उत्पन्न करनारा सूत्रो रहेला छे. ते सूत्रोना मनावथी जे देश, नगर के गाम सुखे वसवा योग्य होय ते दुःखे वसवा योग्य थइ जाय बे. राजर्षि दमसार मुनि ते सूत्र गणाववानो आरंभ कर्यो. जेम जेम ते मुनि तेने गएवा लाग्या, तेम तेम चंपानगरनी अंदर अनेक जातना अकस्मातो थवा लाग्या. नगरना सर्व लोको जयजीत थइ गया. ने शोकाकुल थइ पोतपोताना धन धान्यादिकनो त्याग करी, मात्र जीवित व दशे दिशाओ मां नाशवा लाग्या. ज्यारे प्रजा नशा लागी एटले राजा पण पोताना समृद्धिमान् मेहेलनो त्याग करी नाशी गयो. सर्व नगर शून्य थ गयुं. या वखते नगरनो आवो देखाव जोइ अने लोकोने कष्ट पामता विलोकी ते मुनिना हृदयमां पश्चात्ताप थवा लाग्यो तत्काल ते ते सूनी गणना करवायी निवृत्त थइ गया. तेमणे पोताना मनमां चिंतन्युं " अरे ! आमे शुं कर्यु ? में कारण शिवाय या लोकोने दुःखी कर्या. सर्वज्ञनुं वचन अन्यथा होय नहीं. वीर प्रभुए मने कहुं के, 'कषायना नदयथी तुं केवलज्ञानने हा गयो बे. ' ए वीरनुं वचन यथार्थ थयुं बे." आ प्रमाणे चितव अति करुणारसमां मग्न थयेला मुनिए सर्व लोकोने स्थिर करवा माटे समुत्थानश्रुतने गवा मां. ए श्रुतना सुत्रोने गएवाथी देश, नगर के गाम सुवासित थाय बे. तेमणे आह्लाद आपनारा ते सूत्रोनुं परावर्त्तन जेम जेम करवा मांगयुं, तेमतेम सर्व लोको प्रमुदित थता नगरमां पाछा आववा लाग्या. राजा पण सहर्ष थइ पोताना दरबारमां आव्यो. सर्व नगर निर्भय थ गयुं ने सर्व लोको स्वस्थ थइ गया. पछी दमसार मुनि तपथी कृश थइ उत्कृष्ट एवा शमरसमां मन यता ते नगरमांथी आहार पाणी बीधा वगर पाठा वढया ने विनय सहित मनुनी पासे व्या. राजर्षि दमसार मुनिने जोइ वीरप्रजु वोढ्या " राजर्षि, चंपा नगमां निक्षाने अर्थे जतां कोई मिथ्या दृष्टिना वचनथी क्रोध पामी पछी क्रोधथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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