SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रकाश. शांत थइ तुं अहीं आवेलो बु ए वात यथार्थ जे." ? मुनिए का, हा, ए वात यथार्थ जे. प्रनु बोव्या-" मुनि, जे को साधु अथवा साध्वी कषायने वहन करे, ते आ संसारने दीर्घ करे ने अने जे उपशम नावने धारण करे ने तेनो संसार अल्प थइ जाय ." अनुना आ वचनो सांनळी दमसार मुनिए कह्यु,-" जगवन्, कृपा करी मने उपशमनुं सारनूत प्रायश्चित्त आपो. पठी मनुए तपकरवा रुप प्रायश्चित्त आप्यु. पठी ते महर्षिए प्रनुनी पासे अनिग्रह सीधो के “ स्वामी, ज्यारे मने केवळझान जप्तन्न थशे त्यारे हुं आहारने ग्रहण करीश. “ आवो अनिग्रह धारण करी ते महात्मा दमसार मुनि तप तथा संयमथ) पोताना आत्माने जावता विचरवा लाग्या. प्रमादयो उत्पन्न थयेना दोषने निंदता अने शुन अध्यवसायने धारण करता ते महर्षिने ते पठी सातमे दिवसे केवनझान उत्पन्न थर आव्यु. देवताओए आवी तेमना केवाज्ञाननो महोत्सव कर्यो. महर्षि दमसार केवली जव्यजीवाने प्रतिबोध आपी बार वर्ष सुधी केवनीपर्याय पाली अंते अनशन करी मोक्षपदने प्राप्त थया हता. आ प्रमाणे उपशम नाव उपर दमसार मुनि- सुबोधक दृष्टांत . एवो रोते बीजा पण सम्यक्त्वधार। जीवोए सर्व आत्यंतर तापने निवारवा माटे अने पोताना तथा परना उपकारन करनारा उपशम रसने विषे मग्न थर्बु के, जेयी परमानंदना सुखनी श्रेणी नससित थाय बे, ए उपशम नामनुं प्रथम लक्षण कहेवामां आव्युं. __संवेग नामनुं बीजं लक्षण. अतिशय श्रेष्ट एवा देव तथा मनुष्यना सुखनो अनिवाष राखवो, ए संवेग नामर्नु सम्यक्त्वनुं बीजं लक्षण कहेवाय जे. सम्यग्दृष्टि पुरुष इंछ तथा चक्रवर्तीना मनोहर सुखने पण अनित्य अने मुःखानुबंधी माने ने अने शाश्वतनित्य आनंदना स्वरुपवाळा मोक्षसुखनेज वांछे. ए सम्यक्त्त्वनुं बीजं संवेग अक्षण कहेवामां आव्यु. सम्यक्त्त्व, त्रीजुं लक्षण निर्वेद. नारकी तथा तिर्यच आदि सांसारिक सुखथी कंटाळी जवं, ते निर्वेद नामे सम्यक्त्तनुं त्रो लक्षण कहेवाय . सम्यग्दृष्टि पाणीओ जेमा जन्म मर १ क्रोध कषाय Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy