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________________ प्रथम प्रकाश. मारी आगळ मार्गण - बालोना समूह आवे छे अने गुण ( पछ) बीजी दिशामां जाय बे. एटले कहेवानो आशय एवो बे के, धनुर्विद्या जाणनार पुरुष मार्ग - बालोना समूहने बीजा तरफ फेंके बे, अने गुण-पएछ उंची चमे छे. परंतु तमारे तो बालो तमारी पासे आवे छे, अने पछ बीजी दिशामां जाय बे. ग्रा विरोधन परिहार एवं रीते ने के, हे राजा, तमारी आगळ मार्गण - याचक लोकोना समूह अने तेय तमारा गुणो बीजी दिशाओमां फेझाय डे. १ एए श्लोक सांजळी राजा विक्रम पश्चिम दिशा तरफ मुख राखीने बेठो एटले दक्षिण दिशानुं राज्य तेने आपी दीधुं ते वखते सिद्धसेन आचार्य नीचे प्रमाणे त्रीजो श्लोक बोब्या " सरस्वती स्थिता वक्त्रे, लक्ष्मीः करसरोरुहे । कीर्तिः किं कुपिता राजन्, येन देशांतरं गता ॥ ३ ॥” हे राजा, तमारा मुखमां सरस्वती रहे बे ने तमारा करकमळमां रहे . तोप कीर्त्ति शा माटे कोप पामी बे के जे रीसाइने देशांतरमां चाली गइ बे. 19 ३ आलोक सांजळी राजा विक्रम उत्तर दिशा तरफ मुख राखीने बेटा; त्यारे सिद्धसेनाचार्य तेन सन्मुख थइ नींचेनो चोथो श्लोक बोल्यासर्वदा सर्वदो सीति, मिथ्या संस्तूयसे बुधैः । नारयो बेजिरे पृष्ठं, न वक्षः परयोषितः " ॥ १ ॥ (1 हे राजा, तुं हमेशा सर्वद - सर्व वस्तुओने आपनारो छे, एम विधानो तारी स्तुति करे बे, ते मिथ्या छे, कारण के तारा शत्रुने तें पीठ पीनी परस्त्रीने बीपी नथी अर्थात् जे सर्व वस्तुनो दाता होय ते तेवी वस्तुने शा माटे न आपे ? कहेवानो आशय एवो बे के, तुं कदिपण रणभूमिम थी पाटो फर्यो नथी के जेथी तारा शत्रुओतारी पीठ जुवे अने तें कदिपण परस्त्रीने बाती साथे दबावी नयी के जेथी ते तारी बातीने मेळवे. ** श्लोक सांजळी संतुष्ट थयेला राजा तत्काल पोताना सिंहासन उपरथी वेठो यो अने तेथे चारे दिशाओनुं राज्य सूरिवरने आपवा मांगयुं, त्यारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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