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________________ ៩០ श्री आत्मबोध. कारनं दृष्टांत सांजळ सम्यक्त्ववंत पुरुषोए सर्वथा कुदृष्टिना परिचयनो त्याग करवो. अने सम्यगृष्टिना परिचयने वधारवो. याप्रमाणे सम्यक्त्वने दूषित करनारा सम्यक्त्वना पांच दूषणो जे कहेवामां आव्या तेोथी सम्यक्त्व मलिन थाय बे, मांटे ते पांचे दूषणोनो सर्वथा परिहार करवो. सम्यक्त्वना आठ प्रजावक. हवे सम्यक्त्वना वधे ते प्रजावक कहेवाय बे. प्रजावक कहे वे. जेनाथी सम्यक्त्वनो प्रजाव १ प्रवचनी प्रजावक. प्रवचन एटले द्वादशांगी. ते जेने अतिशयनी पेठे होय ते प्रवचननी कवाय बे. वर्त्तमानकाळने योग्य एवा जे जे सूत्रो बे, तेना अने तेना अर्थना धारण करनारा - तीर्थना वहन करनारा जे आचार्य ने प्रवचनी कहेवाय बे. देवगिणी क्षमाश्रमणादिक प्रथम प्रवचनना प्रजावक थया हतां. --- देवगिनी कथा. Jain Education International • एक वखते राजगृही नगरीने विषे चरम तीर्थकर श्री महावीर प्रभु समोसर्या हता. देवताओ मनोहर समवसरण रचेतुं हतुं बार परिषदो तेमां एकटी मळी हती. ते वखते सुधर्मा इंद्र आव्यो. ते जगवान्ने ऋण प्रदक्षिणा करी ने वंदन करी पोताने योग्य स्थाने वेळो. ते पछी प्रजुए जल सहित मेघना जेवा ध्वनि स्वरनी मधुरतार्थ परमानंदरुप अमृतने ऊरनारी, महा निविम मोहरूप कारनो नाश करनारी, सर्व जगत्नां प्राणी ओने चमत्कार करनारी ने मनने हरनारी एवी देशना आपी. देशनाने अंते सौधर्मपति से विनयथी वीरमनुने पुछ्युं, “ जगवन्, अवसर्पिणी कालमां तमारुं तीर्थ केटलो काल प्रवर्त्तशे. पीशी रीते तेनो विच्छेद थशे ? " इंडनो आ प्रश्न सांजली वीर प्रजुए कहुँ, हे प्र, एकवीश हजार वर्ष दुषम नामे पांचमा आारा सुधी मारुं तीर्थ प्रवर्त्तशे. ते पर पांचमा आराना बेले दिवसे पेहेला पोहोरमां १ श्रुत, २ सूरि, ३ धर्म अने ४ संघ - ए चार विच्छेद पामशे. बीज पोहारे विमलवाहन राजा थता तेनो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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