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________________ प्रथम प्रकाश. सुधर्मा नामे मंत्री ने राजनीति नाश पामी जशे. सायंकाळे बारच्छेद थड़ जशे. आवी रीते मारा तीर्थनो उच्छेद य जशे . इंद्रे पुनः प्रश्न कर्यो; " स्वामी, तमारुं पूर्वगत श्रुत केटलो काल रहेशे ?" मनुए उत्तर आयो “ इंड, एक हजार वर्ष पर्यंत मारुं पूर्वगत श्रुत रहेशे ते पछी तेनो उच्छेद थड़ जशे. • G? 46 इं पुनः पुच्युं, स्वामी, कया आचार्य महाराजनी पछी सर्व पूर्वगत श्रुत विनाश पामशे ? " प्रभु बोब्या- “ देवगिणी क्षमाश्रमणनी पछी सर्व पूर्वगत श्रुत विच्छेद पामी जशे. " इंझे फरीथी पुक्युं, भगवन्, जे देवगिणी थवाना बे, तेमनो जीव हाल क्यां बे ? " मनुए कहाँ, "इंड, जे तारा पेदल सैन्यनो अधिपति हरिणगमेप देव तारी पासे रहेलो बे, ते देवगिणी नो जावी जीव बे. प्रजुनां या वचन सांगळी इंद्र विस्मय पामी गयो अने ते पोतानी पासे रहेला हरिणगमेषी देवनी प्रशंसा करवा लाग्यो. ते देवे पण आ पोतानो वृत्तांत सांजळी लीधो. ते पी इंद्र परिवार सहित प्रभुने नमी पोताने स्थाने चाल्यो गयो. 46 हरिगमेषी देवे अनुक्रमे आयुष्यना दलियानी हानि थतां ब मासनुं आयुष्य थाकतां मनुष्यनुं त्र्यायुष्य बांध्युं, ते पछी पोतानी पुष्पमाळानुं करमाइ जवं पोनुं कंपन वगेरे च्यववाना चिन्हो देखी तेणे इंडने आ प्रमाणे विनंति करी. " स्वामी, तमे अमारा पोषण करनारा प्रभु बो तेथी मारा पर क्रूपा करी एटलं करो के, जेथे । मने परभवने विषे धर्मनी प्राप्ति थाय हुं फरीथी योनिरूप यंत्रना संकटमां पकी वे प्रकारना अंधकारथी जेना चेतननो अने चतुनो लोप थलो एवो बनी गर्जनी औरमां क्षेपाला शरीरने अग्निथी ताप थाय ने सूची ( सोइ ) ना समूहथी पण अधिक शरीरने वेदना थाय, तेवा डुःखो जोगवना जतां हूं धर्मकरणीने जुली जश, माटे मारे स्थाने उत्पन्न थयेला बा हरिगमेषी देवने मने बोध करवा मोकलजो. एथी पनुं स्वामिपणुं पर नवने विषे पण सफळ थशे. " Jain Education International ते देवताना या वचनो अंगीकार कर्या, तोपण ए हरिणगमेपी देवताए पोताना विमाननी जींत उपर वज्र रत्नवमे नीचे प्रमाणे अकरो लख्या. ૧૧ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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