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लिपि-ज्ञान कराया था। क्या हम इस संभावना पर कोई विचार नहीं करना चाहेंगे?
७. 'अथर्वन्' शब्द 'भरत' के पर्याय शब्द के रूप में प्रयुक्त हुआ है; क्या इसे लेकर हम कोई विवेचना करना चाहेंगे? मोहनजो-दड़ो की संस्कृति पर अथर्ववेद का प्रभाव माना जाता है। हम देखें कि क्या इस शब्द-साम्य में गहरे कहीं कोई सांस्कृतिक साम्य पाँव दबाये बैठा है ?
यह उपयुक्त समय है जबकि हमें उक्त सारे तथ्यों को समीक्षा के पटल पर लेना चाहिये और मोहन-जो-दड़ो की खुदाई में प्राप्त संपूर्ण सामग्री का पुरातत्त्व, इतिहास, परम्परा, लिपि, भाषा आदि की दृष्टि से सावधान विश्लेषण/अनुसंधान-अध्ययन करना चाहिये ।
[टिप्पणियाँ : देखिये; परिशिष्ट १, पृष्ठ २१]
मोहन-जो-दड़ो
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