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________________ ८८ on this day in the case of Humanyun" इसका हिन्दी अर्थ है-मुस्लिम बालक के पाँचवें वर्ष के चौथे महीने में चौथे दिन बिस्मिल्ला खानी (अक्षरारम्भ) महोत्सव करते हैं। हुमायूँ की तालीम इसी दिन शुरू हुई थी। जैन ग्रंथों में प्रायः पाँच वर्ष की आयु स्वीकार की गई है और ऐसा लगता है कि वह सार्वभौम थी । इसे लिपि-संस्कार कहते थे । ब्राह्मी लिपि : विकास की ओर ब्राह्मी लिपि शुद्ध भारतीय लिपि है अथवा किसी विदेशी लिपि से विकसित हुई है ? विद्वानों के मध्य यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न रहा है। इस पर बहुत कुछ ऊहापोह हुआ, तर्क-वितर्क चले, खण्डन-मण्डन की बाढ़ आई, किन्तु अन्त में यह सिद्ध हुआ कि यत्किञ्चित् साम्य के आधार पर किसी लिपि को एक दूसरे से निकला हुआ सिद्ध करना हलकापन है। ब्राह्मी लिपि के विदेशी जन्म की मान्यता का एक सबल आधार प्रस्तुत किया जाता रहा है कि भारत में पाँचवीं सदी ईसवी पूर्व के नमूने नहीं मिलते । “लिपि के नमूने' से उनका तात्पर्य था पुरातात्त्विक आधार । 'किन्तु पिपरावा, सोहग्रोरा, महास्थान और बड़ली की प्रौढ़ लेख प्रणाली (ईसा पूर्व ५०० वर्ष) से सिद्ध हो जाता है कि उससे भी पूर्व भारत में समुन्नत लेखन-कला थी, जिसका पुष्ट रूप पिपरावा आदि में दिखाई पड़ा । स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद, यहाँ पुरातात्त्विक खुदाइयों पर अधिकाधिक ध्यान दिया जा रहा है। हो सकता है कि आगे कुछ और दिखाई पड़े। बड़ली के प्रौढ़ लेख की पूर्व कड़ियाँ अवश्य मिलेंगी, ऐसी संभावना है। मोहन-जो-दड़ो और हड़प्पा की खुदाइयों ने बहुत-से विवादों को स्वतः शान्त होने को बाध्य किया है। इसका समय ईसा से ३००० वर्ष पूर्व माना जाता है। इसमें प्राप्त लिपि पूर्णरूप से भारतीय लिपि है । भले ही वह अभी न पढ़ी जा सकी हो, किन्तु वह एक लिपि है, इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता। और फिर, डॉ. व्हूलर का यह अभिमत कि इस देश में मिलने वाला प्राचीनतम अभिलेख ईसा-पूर्व छठी शताब्दी का है, इससे पूर्व नहीं, निराधार है।' शोध-खोज की खींचतान में विद्वान् कभी-कभी अनर्गल भी लिख जाते हैं। एक ओर उनका यह कथन कि सिन्धुघाटी लिपि अभी पढ़ी नहीं जा सकी है और दूसरी ओर, डॉ. डिरिंजर का यह निश्चित मत कि यह लिपि अक्षरात्मक, भावात्मक अथवा दोनों के बीच की अनुवर्ती लिपि है और उससे अर्धवर्णात्मक ब्राह्मी लिपि नहीं निकल सकती,२ कुछ परेशानियों में डाल देता है । जब वह १. भारतीय पुरालिपिशास्त्र, व्हूलर, पृष्ठ १३, इसके उत्तर में देखिए 'भाषाविज्ञान कोश', डॉ० भोलानाथ तिवारी, पृष्ठ ४१६-२०. २. डॉ० डिरिजर, 'दि अलफावेट', उद्धृत 'हिन्दी भाषा : उद्गम और विकास, डॉ० उदय नारायण तिवारी, पृष्ठ ५७१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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