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________________ ७८ स्थान बन जाये । धार्मिक विद्वेष के कारण अनेक श्रमण धार्मिक चिह्नों का विनाश तथा उनका इतिहास से पृथक्करण भारत के अन्य स्थानों की भाँति यहाँ भी कर दिया गया होगा ।" " 'ब्राह्मी लिपि' को दीक्षा- शिक्षा भारतवर्ष संस्कारों का देश है । यहाँ बिना संस्कार के कोई काम नहीं होता । उनमें एक लिपि-संस्कार भी है । इसका अर्थ है- अक्षरों और अंकों का प्रारम्भ । भारतीय ग्रंथों के अनुसार चौलकर्म संस्कार के उपरान्त ही लिपिसंस्कार होना चाहिए । चौलकर्म मुंडन संस्कार को कहते हैं, अर्थात् लिपि ज्ञान आरम्भ करने के पूर्व, गर्भ से चले आये बालों का मुंडन होना आवश्यक । स्वास्थ्य की दृष्टि से यह उचित भी है। इसके लिए आचार्यों ने पाँच वर्ष की आयु निश्चित की थी। जैन और अजैन दोनों ग्रंथों में यह आयु समरूप से मान्य है | महाकवि कालिदास ने रघुवंश में रघु की शिक्षा आदि के सम्बन्ध में पर्याप्त लिखा है । मल्लिनाथीय - टीका में, वैदिक ग्रन्थों - मनुस्मृति आदि के सहाय्य से उसे और अधिक स्पष्ट किया गया है। उनका कथन है कि रघु का अक्षरारम्भ या लिपिज्ञान पाँच वर्ष की आयु में प्रारम्भ हुआ था । एक श्लोक की टीका में उन्होंने लिखा है "स वृत्त चलश्चलकाकपक्षकैरमात्यपुत्रैः सवयोभिरन्वितः । लिपेर्यथावद्ग्रहणेन वाङमयं नदीमुखेनेव समुद्रमाविशत् ।। " २ मल्लिनाथीय टीका --" स रघुः प्राप्ते तु पञ्चमे वर्षे विद्यारम्भं च कारयेद्, इति वचनात् पञ्चमे वर्षे .... . अमात्यपुत्रैरन्वितः सन् । लिपेः पञ्चाशद्वर्णात्मिकाया मातृकाया यथावद् ग्रहणेन सम्यग् बोधेनोपायभूतेन वाङमयं शब्दजातं...." 3 अर्थ--महाराज दिलीप ने अपने कुमार रघु का यथाविधि चूडाकर्म (गर्भकेशमुण्डन) संस्कार किया । वह कुमार शिर पर निकले मसृणमेदुर श्यामकेशों से शोभायमान और अपनी समान वय के मन्त्रिपुत्रों के साथ गुरुकुल में जाने लगा। वहाँ उसने स्वरव्यञ्जनात्मिका लिपि का ज्ञान प्राप्त किया, जिससे उसे शब्द वाक्यादि रूप वाङ्मय में प्रवेश करना उसी प्रकार सरल हो गया जैसे नदी में बहकर आने वाले किसी मकरादि जलपशु को 'समुद्र प्रवेश सुलभ हो जाता है । यहाँ आचार्य मल्लिनाथ की टीका का यह कथन - स रघुः प्राप्ते तु पञ्चमे वर्षे विद्यारम्भं च कारयेद् इति वचनात् पञ्चमे वर्षे .... ।' ध्यान देने योग्य १. डॉ० मोहनलाल गुप्ता, 'Habitant, Economy and Society in Gaddiyars', टंकित प्रति, पृष्ठ ३५८. २. कालिदास, रघुवंश, ३/२८. ३. रघुवंश - मल्लिनाथीय टीका ३ / २८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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