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________________ भी लिखा है कि भगवान् ने दायें हाथ से ब्राह्मी को अक्षरज्ञान और बायें हाथ से ब्राह्मी को अंकज्ञान कराया। उनका कथन है "पुत्राणां शतमेकोनं सुतां चैकां यशस्वतीम् । सुषवेबाहुबलिनं सुनन्दा सुन्दरीमपि ॥१३॥ अक्षराणि बिभु ब्राह्म या अकारादीन्यवोचत् । वामहस्तेन सुन्द- गणितं चाऽप्यदर्शयत् ॥१४॥"१ इसका अर्थ है--ऋषभदेव की पत्नी यशस्वती ने एकोनशत (निन्यानवे) पुत्रों को और एक पुत्री (ब्राह्मी) को जन्म दिया तथा सुनन्दा (दूसरी पत्नी) से बाहुबलि और सुन्दरी उत्पन्न हुए । भगवान् ने ब्राह्मी को अकारादि अक्षर (दायें हाथ से) सिखाये और सुन्दरी को बायें हाथ से गणित विद्या (अंक ज्ञान) का दर्शन कराया। डॉ. नेमिचन्द्र जैन ने 'संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान' में एक शत्रुञ्जय काव्य का उल्लेख किया है। उसमें लिखा है कि ऋषभदेव ने अपने ज्येष्ठपुत्र भरत को ७२ कलाएँ, बाहुबलि को गज, अश्व, स्त्री और पुरुष के लक्षण तथा पुत्री सुन्दरी को गणित का ज्ञान कराया । साथ ही, उन्होंने अपनी दूसरी पुत्री ब्राह्मी को अपसव्य (दायें) हाथ से अठारह लिपियों की शिक्षा दी। लेखक ने शत्रुञ्जय काव्य में लिखा है अध्यजीगपदीशोऽपि, भरतं ज्येष्ठनन्दनम् । द्वासप्ततिकलाखण्डं, सोऽपिबन्धन्निजान् परान् ॥ लक्षणानि गनाश्वस्त्रीपुंसामीशस्त्वपाठयत् । सुतं च बाहुबलिनं सुन्दरी गणितं तथा ॥ अष्टादशलिपी थो दर्शयामास पाणिना । अपसव्येन स ब्राह्मया ज्योतिरूपा जगद्धिता ॥ अर्थ-भगवान् ने अपने ज्येष्ठनन्दन भरत को बहत्तर कलाएँ सिखाईं और फिर उसने अपने अन्य भाइयों को। भगवान् ने अपने ही दूसरे पुत्र बाहुबलि को गज, अश्व, स्त्री और पुरुष के लक्षण तथा सुन्दरी को गणित पढ़ाया। उन्होंने संसार का हित करने वाली और ज्योति रूपा अठारह लिपियाँ ब्राह्मी को दाहिने हाथ से सिखाई। १. आदिनाथ चरित, तीसरा सर्ग, १३, १४, पुराण सारसंग्रह में संकलित, पृष्ठ ३६. २. शन्नुञ्जय काव्य, ३/१२६-१३१, 'संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान', पृष्ठ ५६१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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