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अत्यधिक प्रतिष्ठित और प्रभावशाली साधु थे । उनका सिद्धहेमव्याकरण आज भी विद्वानों के आकर्षण का विषय है । कोषग्रंथों में 'अभिधानचिन्तामणि' का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने ही ' त्रेसठशलाका पुरुष चरित्र' का निर्माण किया था । उनका कथन है
"अष्टादशलिपि ब्राह्म या अपसव्येन पाणिना । दर्शयामास सव्येन सुन्दर्यां गणितं पुनः ॥ १
इसका अर्थ है कि भगवान् ने ब्राह्मी को अठारह लिपियों का ज्ञान दायें ( अपसव्य ) हाथ से कराया और सुन्दरी को बायें हाथ से गणित ( अंक ज्ञान ) की शिक्षा दी ।
आचार्य दामनन्दि के 'पुराणसार संग्रह' में आदिनाथ चरित भी संगृहीत है और उसमें तीर्थंकर ऋषभदेव, उनके पुत्र-पुत्रियों और उनकी शिक्षा-दीक्षा का विवेचन है । आचार्य दामनन्दि के समय, स्थान और गुरु-परम्परा का कोई परिचय नहीं मिलता । 'पुराणसार संग्रह' के सम्पादक डॉ. गुलाबचन्द चौधरी ने अपनी भूमिका में लिखा है, "पुराणसार संग्रह' के अध्ययन से भी बहुत थोड़ी सामग्री उनके परिचय के लिए मिली है। उन्होंने अपने पुरुदेव चरित (आदिनाथ चरित) के पंचम सर्ग के ५० वें श्लोक में स्वयं को 'प्रवर विनयनन्दिसूरिशिष्यः' कहा है, अर्थात् वे आचार्य विनयनन्दि के शिष्य थे । आचार्य दामनन्दि के गुरु विनयनन्दि के सम्बन्ध में भी हमें कुछ ज्ञात नहीं और न उनके नाम का उपलब्ध सूचियों से कुछ पता लगता है।"२ एक दूसरे स्थान पर डॉ. गुलाबचन्द ने आचार्य दामनन्दि को देवसंघ का आचार्य माना है । उनका आधार है वर्द्धमान चरित की प्रथम सर्गान्त प्रशस्ति । उसमें लिखा है- "वर्ध- 3 मान चरिते - देवसंघस्य कृतौ प्रथम सर्गः ।" 3 देवसंघ दक्षिणभारत के दिगम्बर मूलसंघ के चार भेदों में से एक है । इससे स्पष्ट है कि वे दाक्षिणात्य थे । दक्षिण में ही कहीं के रहने वाले थे । चतुविशंति पुराण इनका दूसरा ग्रंथ है, इसमें चौबीस तीर्थंकरों के अतिरिक्त महापुरुषों का भी विवेचन है । राइस महोदय ने भूलवशात् ही पुराण सार संग्रह और चतुर्विंशति पुराण को एक मान लिया था । इस दूसरे ग्रंथ से भी आचार्य दामनन्दि के जीवन पर कोई प्रकाश नहीं
पड़ता ।
आचार्य दामनन्दि ने 'आदिनाथ चरित' के तीसरे सर्ग में सम्राट ऋषभदेव के सौ पुत्रों और दो पुत्रियों के उत्पन्न होने की बात लिखी है । साथ ही यह
१. हेमचन्द्राचार्य, त्रेसठशलाकापुरुषचरित्र, १ / २ / ६६३.
२. आचार्य दामनन्दि, पुराणसारसंग्रह, डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी- सम्पादित, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, प्रस्तावना, पृष्ठ ८.
३. देखिए वही, पृष्ठ ६.
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